चलो यादों की एक डायरी बनायें
कुछ टिकोले कुछ कच्चे अमरुद में
थोड़ी सी नमक मिलाएं ...
आँखें बंद
और 20 25 साल .... नहीं नहीं
उम्र के हिसाब से मन को पीछे ले जाएँ :)
बड़ा सा खुला मैदान
हरी हरी घासें
बीच बीच में साफ़ सुथरी मिटटी का हिस्सा
उसमें लकीरें बनायें
इक्कट दुक्कट खेलें
घास पर बैठकर रुमाल चोर खेलें
हार जाने पर दिल खोलकर झगड़ें
बाल खींचें
हाथ पैर चलायें
दांत काटने पर अम्मा को बुलाएँ ....
पापा के वादों का पन्ना भी इसमें जोड़ें
'गलती कबूल कर लेने पे मार क्या
डांट भी नहीं पड़ेगी' ...
एक बार फिर उनका कीमती चश्मा तोड़
गलती कबूल कर
उनके वादे को भुनाएं :)
....... ओह ! गुस्से से उनकी लाल लाल आँखें
और वचनबद्ध स्थिति
आज भी तपती धूप में
पानी के छींटे सी लगती है
तो चलो डायरी में कुछ पानी के छींटों को भी जज़्ब करें
यादों का मीठा एल्बम बना दें उसे ! ...
मउगे के आने का भी एक पन्ना बनायें
..... मउगा !!! छोटे से बक्से में औरतों के सामन बेचता था
तो - कौन है ?पूछने पर खुद कहता था - मउगा !
उसका छोटा सा बक्सा एक पिटारा था
रीबन,बिंदी,क्लिप,नेलपौलिश,सेफ् टीपिन,....
खुशियों का संसार लगता था वो बक्सा
.... आओ पहले की तरह उसे घेरकर बैठ जाएँ
वहां से उठकर दहीवाले की हांडी से दही निकालें
उसके हताश होने पर ठहाके लगायें!
समय की प्रतिकूलता में
भईया के दूर जाकर पढने से हुई उदासी में
उसके आने पर बनते मैन्यू की ख़ुशी का पन्ना जोड़ें
क्रिकेट न आने पर भी
क्रिकेट खेलते हुए
उसकी कैप्टेन होने का भी रूतबा जोड़ें :)
...
भैंस पर रोते हुए चरवाहे की गालियाँ
निम्बू के फांक से लेमनचूस
आम की गुठली को सफ़ेद करना
.... फिर ....
उस जगह से दूसरी जगह जाना
उमड़ता समूह
राम वनवास की ही याद दिला गया था !
करीने से इन सबको जोड़ना है
यूँ जुड़े ही हैं
पर एक यात्रा डायरी बनाने की कर लें
तो हर्ज़ ही क्या है !
छोटे छोटे गम
छोटी छोटी खुशियाँ
आँखों को नमी
होंठों को जो मुस्कान देती हैं
वे अनमोल होती हैं
.....
मुझे अपने घर का फ्रेम कैद करना है
क्रिकेट बॉल
तमतमाए लड़े हुए चेहरे
बेफिक्र हंसी
बिछावन पर खाना
नए कैसेट लाना
...ओह !
ये दिन बदल जायेंगे
तब कहाँ लगता था
खैर!
तुम अपनी डायरी बनाओ
मैं अपनी डायरी में लग जाती हूँ
बहुत बड़ा काम है यह
कितनी बातें कोने में अभी भी छुपी हैं
खोजना है आइस बाइस करके
....... :)
यादों की खूबसूरत विरासत सी डायरी के लिए
चलो एक बार जमके खेलते हैं पीछे के मैदान में
..............
..............
..........
:-)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .....
जवाब देंहटाएं:) सच बहुत बड़ा काम है ये डायरी बनाना ... कितना कुछ याद आएगा इसमें लिखना .... मुझे तो गिल्ली डांडा याद आ रहा है :):) और गिट्टे खेलना
जवाब देंहटाएंयादों की खूबसूरत विरासत सी डायरी के लिए
जवाब देंहटाएंचलो एक बार जमके खेलते हैं पीछे के मैदान में
...ji bilkul bhaut bada kaam h...sab kuch ek sath ek dayri me bandh dena....kuch muskil kaam hi kara jaaye.....bhaut accha kaam diya apne ham sab ko...
यादों की खूबसूरत विरासत सी डायरी के लिए
जवाब देंहटाएंचलो एक बार जमके खेलते हैं पीछे के मैदान में
...ji bilkul bhaut bada kaam h...sab kuch ek sath ek dayri me bandh dena....kuch muskil kaam hi kara jaaye.....bhaut accha kaam diya apne ham sab ko...
करोगे याद तो हर बात याद आयेगी
जवाब देंहटाएंगुजरते वक्त की हर मौज ठहर जायेगी
...ओह !
जवाब देंहटाएंये दिन बदल जायेंगे
तब कहाँ लगता था ....
क्या क्या याद दिलाते गीत !
अतीत के अंधेरों में दबी पडी पुरानी यादों की पोटली को बरबस ही बाहर खींच लाई हैं आप रश्मिप्रभा जी ! सब कुछ आँखों के सामने घूम गया है और मैं एक मुग्ध दर्शक बनी उस मनमोहक चलचित्र को बस देखे ही जा रही हूँ ! मीडास टच वाली बहुत ही खूबसूरत रचना !
जवाब देंहटाएंयादों की खूबसूरत विरासत ...जिसका हर दृश्य जीवंत हो उठा आपकी कलम से ...
जवाब देंहटाएंआभार
कितनी खूबसूरत और मासूम यादें हैं!:)
जवाब देंहटाएंयादों की पूँजी कभी ख़त्म नहीं होती... दिन-ब-दिन बढ़ती ही जाती है...
~सादर!!!
:-)
जवाब देंहटाएंहमारे बाद जो हमारी डायरी पढ़ेगा वो कहेगा पागल थी कोई :-)
सादर
अनु
यादों की खूबसूरत विरासत सी डायरी के लिए
जवाब देंहटाएंचलो एक बार जमके खेलते हैं पीछे के मैदान में
..............
ओह बहुत सुन्दर ... :)
यादों की रील खोलते जाओ तो सिमटने को नहीं आती...पर कितना सुखद आश्चर्य नहीं है यह कि सबकी यादें भी सांझी हैं..सबके सुख-दुःख की तरह..
जवाब देंहटाएंआपकी कई यादेँ तो हूबहू ..मुझे अचानक अपना बचपन (गर्मीयोँ कि छुट्टीयाँ ,ददिहाल, दादी,खेल और भी बहुत मीठी यादेँ) याद आ गया :)
जवाब देंहटाएंडायरी के हर पन्ने पर फिर से जीते उन्ही लम्हों को..
जवाब देंहटाएंऔर धीरे धीरे, लिखते लिखते, सारे पन्ने भर जायें।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंयादों को संजोये खूबसूरत डायरी,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंटिकोरे पर नमक लगा कर खाना , मुंह में पानी आ गया .
जवाब देंहटाएंइस डायरी में जोड़ लूं , गन्ने को दांतों से छिल कर खाना इतना , की होठों के किनारे ही छिल जाए ..
क्या क्या याद दिलाती है आप !
सीधे बचपन में पंहुचा दिया आपकी रचना ने ...बहुत अच्छा रिवर्स गेयर लगाया है रश्मि जी!
जवाब देंहटाएंअरे ये क्या किया आपने ??
जवाब देंहटाएंजाने क्या क्या याद दिला दिया.
आज हालत ये है कि मन को पीछे ले जाना भी काम हो गया है
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियाँ..... सच में और फिर जीवन जी जाएँ , एक डायरी बनाये
जवाब देंहटाएंबचपन की बीती बातें याद आ गयी,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST... नवगीत,
स्मृति पटल से समस्त बचपन होकर गुज़र गया. सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंयादों की खूबसूरत विरासत सी डायरी के लिए
जवाब देंहटाएंचलो एक बार जमके खेलते हैं पीछे के मैदान में.....bhali kahi....jo jogi ko bhave,wahi vaid fharmave.....
सच कितना कुछ है यादों में......बहुत ही खुबसूरत पोस्ट।सच कितना कुछ है यादों में......बहुत ही खुबसूरत पोस्ट।
जवाब देंहटाएंअतीत ही नहीं जमीने से भी जोड़ रहती है डायरी, बशर्ते डायरी लिखने में ईमानदारी बरती गई हो।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर
बहुत खूबसूरत है आपकी डायरी ... बीते समय की हर एक बात ताज़ा हो गई लगा जैसे कल की ही बात हो...
जवाब देंहटाएंगुज़रे समय में लौटना ... सुखद रहता है हमेशा ...
जवाब देंहटाएंआपको जनम दिन की बहुत बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदी को जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें!
सादर..
जन्मदिन के दिन आपको बचपन याद आ रहा है ....!!
जवाब देंहटाएंबचपन याद दिलाती सुंदर अभिव्यक्ति .....!!
मन तरो ताज़ा कर गयी ....
आपकी डायरी में मेरा एक पन्ना
जवाब देंहटाएं"मउगा "की तरह दादा जी की कचहरी में ताला लगी हुई पेटी का रहस्य जानने की उत्सुकता हमेशा बनी रहती ।
जब भी दादा नहाने जाते उनके जनेऊ में लटकी चाबी को ललचाई नजरो से देखना ,क्योकि पाँच पैसे ,दवात स्याही ,खाने की मीठी सुपारी ,हवाबान हरड ,माचिस की तीलिया और न जाने कितनी चीजे उस चाबी में नजर आती ।
आपकी डायरी में मेरा एक पन्ना
जवाब देंहटाएं"मउगा "की तरह दादा जी की कचहरी में ताला लगी हुई पेटी का रहस्य जानने की उत्सुकता हमेशा बनी रहती ।
जब भी दादा नहाने जाते उनके जनेऊ में लटकी चाबी को ललचाई नजरो से देखना ,क्योकि पाँच पैसे ,दवात स्याही ,खाने की मीठी सुपारी ,हवाबान हरड ,माचिस की तीलिया और न जाने कितनी चीजे उस चाबी में नजर आती ।
मेरी भी डायरी है
जवाब देंहटाएंहम भी लिख रहें है ....आपकी तरह अपनी यादों को :)
बचपन के दिनों का बहुत ही सुन्दर वर्णन...
जवाब देंहटाएंसुन्दर सा अहसास लिए...सुन्दर रचना...
:-)