धूल से सने पाँव
एक दूसरे के बाल खींचते हाथ
तमतमाए चेहरे
कान उमेठे जाने पर
अपमानित चेहरा
और प्रण लेता मन .... अगली बार देख लेंगे ....
भाई-बहन के बीच का यह रिश्ता
कुछ खट्टा कुछ मीठा
कितना जबरदस्त !....
शैतानियों के जंगल से
अगले कारनामे की तैयारी कितने मन से होती थी !
......
फिर स्कूल,कॉलेज,किसी की नौकरी,किसी की शादी
..... कुछ उदासी,कुछ अकेलापन
तो रहने लगा छुट्टियों का इंतज़ार
छोटी छोटी लड़ाइयाँ
अकेले होने का डर
फिर भी शिकायतों की पिटारी .... अगली छुट्टी के लिए !
फिर अपना घर,अपनी परेशानी
आसान नहीं रह जाती ज़िन्दगी उतनी
जितनी माँ के आँचल में होती है
एक नहीं कई तरफ दृष्टि घुमानी होती है
कभी घर,कभी ऑफिस,कभी थकान,कभी बच्चों का स्कूल ....
बचपन से बड़े होने के लम्बे धागे में
जाने कितने लाल,हरे,नीले,पीले कारण गूंथते जाते हैं
.........
समय हवाई जहाज बन उड़ता है
बिना टिकट हमें उसके साथ उड़ना होता है
न बारिश,न धुंध,.... कोई समस्या समय के आगे नहीं
उसकी मर्ज़ी -
वह उड़ाता जाए
और अचानक उतार दे
उसके बाद ?
डरने से,सिहरने से भी क्या
यादों के बीच मुस्कुराते हुए
बहुत कुछ याद कर आंसू बहाते हुए
हम कितने बेबस होते हैं ....
यह भी ज़रूरी है - वह भी ज़रूरी है के जाल में फंसकर
हम दूर हो जाते हैं
छुट्टियों के इंतज़ार के मायने भी खो जाते हैं
रह जाता है एक शून्य
जिसमें रिवाइंड,प्ले चलता है
मन को उसमें लगाना पड़ता है ............
या फिर लिखते रहो यूँ ही कुछ कुछ -