23 मई, 2014

याद है …?


याद है तुम्हें ?
जब पहली बार हमारा परिचय हुआ
तुम खुद में थी
मैं खुद में
फिर भी हम साथ चल पड़े थे  …

याद है न  …

तुम्हें याद है ?
तुम्हारे टिफिन और मेरे टिफिन में कितना फर्क होता था
तुम पूरियाँ लाती थी
मैं रोटी
तुम्हारे टिफिन से खाना मुझे अच्छा लगता था
लेकिन मेरी रोटियों को तुम नहीं छूती थी
मुझे गुस्सा आता
बुरा लगता
और मैं गर्व से कहती
- स्वास्थ्य के लिए यह अच्छा है
तुम्हारी पूरियों को कई बार मैंने भी ठुकराया  …

याद है न  …

क्या कहूँ ?
तुम्हारी सेहत भरी ज्ञान के आगे
मेरी पूरियों का मज़ा किरकिरा हो जाता था !
खैर छोड़ो,
वो समय कितना अच्छा था
विद्यालय का वार्षिक कार्यक्रम था
तुम मद्रासन लड़की बनी थी
मैं काश्मीरी
हम खाने की चीजें बेच रहे थे
खेल में हमने शतरंज चुना
हाहाहा - दो ही थे हम
तुम फर्स्ट हुई
मैं सेकेण्ड
रंगमंच पर जो काव्य-गोष्ठी हुई
तुम हरिवंशराय बच्चन बनी
मैं नीरज
कितना खुशनुमा था सबकुछ - है न ?

हाँ,  …।
आज भी वर्तमान सा सब याद आता है !
पर उसके बाद हम अपनी पढ़ाई को लेकर अलग हो गए
पर डाकिया हमारे खत
एक-दूसरे को देता था

वक़्त द्रुत गति से भागता गया  ....
अब हम सास हैं,नानी-दादी हैं
पर इन झुर्रियों की अनुभवी रेखाओं के पीछे
आज भी वह अल्हड़ शरारती लड़की है
जो बिना शरारत किये नहीं रहती थी  …
… याद है न ?
हाहाहाहा बिलकुल याद है

24 टिप्‍पणियां:

  1. यादों का पिटारा समवेदनाओं से भरा , उत्क्रस्ट पंक्तियाँ

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  2. मन सदा ही अल्हड़ रहना चाहता है ... यही सच है

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  3. वाह...रचना पढ़ते हुए हम भी अपनी सहेलियों को याद करते रहेः) मन भी अल्हड़ है जीः)

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  4. ऊपर खोल बदलता जाता , भीतर मन तो वही रहता !
    आजकल दादी नानी इतनी बूढी कहाँ दिखती है , अर्चना जी को ही देखे :)

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  5. इन यादों को कोई दायरा
    नहीं बाँध पाया
    कोई पैमाना कोई मीटर नहीं माप पाया
    बस मन ने जब जी चाहा
    लगा ली दौड़ अनियंत्रित गति से
    .....

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  6. याद न जाए बीते दिनों की...उन्हीं लम्हों को संजोये बाकी जिंदगी भी कट जाती है...

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  7. वक़्त द्रुत गति से भागता गया ....
    अब हम सास हैं,नानी-दादी हैं
    पर इन झुर्रियों की अनुभवी रेखाओं के पीछे
    आज भी वह अल्हड़ शरारती लड़की है
    जो बिना शरारत किये नहीं रहती थी …
    … याद है न ?
    हाहाहाहा बिलकुल याद हैbahut sundar

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  8. जिस्म के लिये उम्र चाहे कितने भी फासले तय कर ले लेकिन हर स्त्री अपने मन में सदा षोडशी ही बनी रहती है ! हफ्ते दस दिन की बातें मस्तिष्क में रुकें या ना रुकें बचपन की यादें चिरस्थाई हो सदा गुदगुदाती रहती हैं ! आपकी रचना ने कई पुराने तराने छेड़ दिये जो आज भी स्मृतियों में ताज़ा हैं और आपकी कविता के हमसाये से ही मन में चहलकदमी करते रहते हैं ! आभार आपका !

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  9. यह यादें ही तो जीवन हैं...लाज़वाब प्रस्तुति...

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  10. कहाँ भूल पाटा है वो बचपन ... उमे के साथ प्रखर होता जाता है ...
    लाजवाब रचना ...

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  11. Sundar , Sahaj Dil se likhi rachana ke liye Sadhuvad
    सादर आमंत्रित है
    www.whoistarun.blogspot.in

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  12. अब हम सास हैं,नानी-दादी हैं
    पर इन झुर्रियों की अनुभवी रेखाओं के पीछे
    आज भी वह अल्हड़ शरारती लड़की है
    जो बिना शरारत किये नहीं रहती थी …
    सुन्दर प्रस्तुति यादें भी कितना जुल्म करती है

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  13. बूढे शरीर में भी कहीं न कहीं एक किशोरी छुपी है जिसकी यादों में अल्हडता छलकती है।

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  14. आपने तो मन के सोये तार को ऐसे छेड़ दिया कि बस.. यादों में डूब रहा है आज..

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  15. यह यादें ही जीवन का आधार हैं ! मंगलकामनाएं !!

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  16. यादें यादें ..यादें रह जाती है
    कुछ छोटी छोटी बातें रह जाती हैं

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  17. काफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |

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