याद है तुम्हें ?
जब पहली बार हमारा परिचय हुआ
तुम खुद में थी
मैं खुद में
फिर भी हम साथ चल पड़े थे …
याद है न …
तुम्हें याद है ?
तुम्हारे टिफिन और मेरे टिफिन में कितना फर्क होता था
तुम पूरियाँ लाती थी
मैं रोटी
तुम्हारे टिफिन से खाना मुझे अच्छा लगता था
लेकिन मेरी रोटियों को तुम नहीं छूती थी
मुझे गुस्सा आता
बुरा लगता
और मैं गर्व से कहती
- स्वास्थ्य के लिए यह अच्छा है
तुम्हारी पूरियों को कई बार मैंने भी ठुकराया …
याद है न …
क्या कहूँ ?
तुम्हारी सेहत भरी ज्ञान के आगे
मेरी पूरियों का मज़ा किरकिरा हो जाता था !
खैर छोड़ो,
वो समय कितना अच्छा था
विद्यालय का वार्षिक कार्यक्रम था
तुम मद्रासन लड़की बनी थी
मैं काश्मीरी
हम खाने की चीजें बेच रहे थे
खेल में हमने शतरंज चुना
हाहाहा - दो ही थे हम
तुम फर्स्ट हुई
मैं सेकेण्ड
रंगमंच पर जो काव्य-गोष्ठी हुई
तुम हरिवंशराय बच्चन बनी
मैं नीरज
कितना खुशनुमा था सबकुछ - है न ?
हाँ, …।
आज भी वर्तमान सा सब याद आता है !
पर उसके बाद हम अपनी पढ़ाई को लेकर अलग हो गए
पर डाकिया हमारे खत
एक-दूसरे को देता था
वक़्त द्रुत गति से भागता गया ....
अब हम सास हैं,नानी-दादी हैं
पर इन झुर्रियों की अनुभवी रेखाओं के पीछे
आज भी वह अल्हड़ शरारती लड़की है
जो बिना शरारत किये नहीं रहती थी …
… याद है न ?
हाहाहाहा बिलकुल याद है
यादों का पिटारा समवेदनाओं से भरा , उत्क्रस्ट पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंमन सदा ही अल्हड़ रहना चाहता है ... यही सच है
जवाब देंहटाएंवाह...रचना पढ़ते हुए हम भी अपनी सहेलियों को याद करते रहेः) मन भी अल्हड़ है जीः)
जवाब देंहटाएंऊपर खोल बदलता जाता , भीतर मन तो वही रहता !
जवाब देंहटाएंआजकल दादी नानी इतनी बूढी कहाँ दिखती है , अर्चना जी को ही देखे :)
इन यादों को कोई दायरा
जवाब देंहटाएंनहीं बाँध पाया
कोई पैमाना कोई मीटर नहीं माप पाया
बस मन ने जब जी चाहा
लगा ली दौड़ अनियंत्रित गति से
.....
यादें जीने का आधार होती है :)
जवाब देंहटाएं:) कहाँ भूलती हैं ऐसी यादें ....
जवाब देंहटाएंयाद न जाए बीते दिनों की...उन्हीं लम्हों को संजोये बाकी जिंदगी भी कट जाती है...
जवाब देंहटाएंवक़्त द्रुत गति से भागता गया ....
जवाब देंहटाएंअब हम सास हैं,नानी-दादी हैं
पर इन झुर्रियों की अनुभवी रेखाओं के पीछे
आज भी वह अल्हड़ शरारती लड़की है
जो बिना शरारत किये नहीं रहती थी …
… याद है न ?
हाहाहाहा बिलकुल याद हैbahut sundar
जिस्म के लिये उम्र चाहे कितने भी फासले तय कर ले लेकिन हर स्त्री अपने मन में सदा षोडशी ही बनी रहती है ! हफ्ते दस दिन की बातें मस्तिष्क में रुकें या ना रुकें बचपन की यादें चिरस्थाई हो सदा गुदगुदाती रहती हैं ! आपकी रचना ने कई पुराने तराने छेड़ दिये जो आज भी स्मृतियों में ताज़ा हैं और आपकी कविता के हमसाये से ही मन में चहलकदमी करते रहते हैं ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंयह यादें ही तो जीवन हैं...लाज़वाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकहाँ भूल पाटा है वो बचपन ... उमे के साथ प्रखर होता जाता है ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ...
Sundar , Sahaj Dil se likhi rachana ke liye Sadhuvad
जवाब देंहटाएंसादर आमंत्रित है
www.whoistarun.blogspot.in
वाह, कमाल की रचना
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर :)
जवाब देंहटाएंअब हम सास हैं,नानी-दादी हैं
जवाब देंहटाएंपर इन झुर्रियों की अनुभवी रेखाओं के पीछे
आज भी वह अल्हड़ शरारती लड़की है
जो बिना शरारत किये नहीं रहती थी …
सुन्दर प्रस्तुति यादें भी कितना जुल्म करती है
बूढे शरीर में भी कहीं न कहीं एक किशोरी छुपी है जिसकी यादों में अल्हडता छलकती है।
जवाब देंहटाएंआपने तो मन के सोये तार को ऐसे छेड़ दिया कि बस.. यादों में डूब रहा है आज..
जवाब देंहटाएंयह यादें ही जीवन का आधार हैं ! मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंवाह एक और उत्कृष्ट रचना :)
जवाब देंहटाएंयादें यादें ..यादें रह जाती है
जवाब देंहटाएंकुछ छोटी छोटी बातें रह जाती हैं
वाह !!! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ...
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