कोई बंधन में डाले
या हम स्वयं एक बाँध बनाएँ
- दोनों में फर्क है !
तीसरा कोई भी जब रेखा खींचता है
तो उसे मिटाने की तीव्र इच्छा होती है
न मिटा पाए
तो एक समय आता है
जब वह बोझ लगने लगता है !
प्यार, विश्वास का रिश्ता हो
हम उसकी महत्ता समझें
तो हम स्वयं बंध जाते हैं
कोई रेखा खींचने की ज़रूरत नहीं होती !
प्यार और अंकुश का अंतर समझना चाहिए …
अंकुश की ज़रूरत
वो भी एक हद तक
बचपन में ही होती है
उसके बाद का प्रयास व्यक्ति को
अनायास उच्चश्रृंखल बना देता है
झूठ की उतपत्ति होती है
सम्मान खत्म हो जाता है
....
शर्त,वादे क्यूँ ?
जीतकर क्या ?
वादे ? - न निभाया जाए
तो याद दिलाने
चीखने-चिल्लाने से भी क्या ?
हम चाहें
तो बिना किसी वादे के
बहुत कुछ कर सकते हैं !
यह चाह अपनी होती है
यदि कोई और करवाए
फिर - आज न कल
विस्फोटक स्थिति आती ही है !
संस्कार
उदहारण
सब एक विशेष उम्र तक ही दिए जाते हैं
बाद में व्यक्ति स्वयं उदहारण होता है
जय या क्षय का …
हमेशा की तरह बहुत खुबसूरत अहसास..
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील उदगार...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (31-05-2014) को "पीर पिघलती है" (चर्चा मंच-1629) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वादों, कोशिशों सब से बढ़कर है नीयत।।।
जवाब देंहटाएंएक और मील का पत्थर
जवाब देंहटाएंबड़ी बात यही है कि दूसरों की खींची रेखाएं टूट सकती है , मगर अपनी मुश्किल से !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसंस्कार
जवाब देंहटाएंउदहारण
सब एक विशेष उम्र तक ही दिए जाते हैं
................ बिल्कुल सच
सीमाए खुद की खींची हुयी ही रह पाती हैं लम्बे समय तक ... मुस्किल होता है बंधन में रहना ....
जवाब देंहटाएंगहन और सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्रेम, बाँध और अंकुश... कभी भी उचित नहीं रहे.. प्रेम का अर्थ बन्धन क्यों हो.. प्रेम पाश में बँधे युगल पशु हो सकते हैं (जिसे पाश में बाँधा जाए वह पशु) किंतु जहाम कोई बन्धन नहीं वहीं प्रेम अपने चरम रूप में परिलक्षित होता है!!
जवाब देंहटाएंलाली मेरे लाल की, जित देखो तित लाल,
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल!!
आप की कविताओं में जितने आयाम होते हैं, उनतक पहुँचना क्या स्पर्श कर पाने की क्षमता भी नहीं मुझमें!! कभी कभी जलन होती है दीदी, आपसे. :)
अब ये नहीं पचेगा भाई, वैसे हमको जलन नहीं होती,:) फख्र होता है कि मेरा भाई बौद्धिकता के आयाम को छूकर कुछ लिखता और कहता है
हटाएंकितना सूक्ष्म विश्लेषण है सूक्ष्तम भावों का ..
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जवाब देंहटाएंसब एक विशेष उम्र तक ही दिए जाते हैं
बाद में व्यक्ति स्वयं उदहारण होता है bahut hi gahri baat kahi aapne jahan se lati hain aap itni gahri soch
bahut bahut badhai
rachana
गहन विचार को मजबूर करती सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंबंधन और बाँध - में फर्क है !
जवाब देंहटाएंसंस्कार
उदहारण
सब एक विशेष उम्र तक ही दिए जाते हैं
बाद में व्यक्ति स्वयं उदहारण होता है
जय या क्षय का.... बहुत गहन भाव .. हार्दिक बधाई.. सृजन हेतू ...
कठिन है स्वयं को बांधना, और अगर अपनी सीमायें तय कर लीं तो बहुत सारी गांठें खुलने भी लगती हैं.
जवाब देंहटाएंगहन अनूभूति से लिखी सुन्दर रचना।