आँधियाँ सर से गुजरी हों
टूट गया हो घर का सबसे अहम कोना
तो तुम दुःख के सागर में डूब जाओ
यह सोचकर
कि अब कुछ शेष नहीं रहा
तो तुम्हें एक बार बताना होगा
तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो ?
घर का कोना सिर्फ तुमसे ही तो नहीं था
कई पैरों ने की होंगी चहकदमियाँ उस ख़ास कोने में
उस ख़ास घर में …
क्या तुम उन हथेलियों को थामकर मजबूत नहीं हो सकते ?
फिर से एक महत्वपूर्ण कोना नहीं बना सकते ?
जीने के लिए आँधियों का भय रखो
मजबूत छतें बनाओ
आँखों को जमकर बरसने दो
पर जो हथेलियाँ तुम्हारी हैं
उन पर भरोसा रखो !
वक़्त कितना भी बदल जाये
स्पर्श नहीं बदलते
उनका जादू हमेशा परिवर्तन लाता है
तो -
निराशा के समंदर से बाहर निकलो
किनारे तुम्हारे स्वागत में
नए विकल्पों के साथ पूर्ववत खड़े हैं।
दृढ़ता से पाँव रखो
खुद को पहचानो
फिर देखो,
कुछ भी असंभव नहीं