मैं स्त्री
मुझे दी गई है व्यथा
पर मैं व्यथा नहीं हूँ
मुझमें आदिशक्ति का प्रवाह है
है अपने स्व' के लिए धरती में समाने की क्षमता
प्रश्नों के घेरे में राहुल को पालने का मनोबल ...
मेरे आँसू
मेरी कमज़ोरी नहीं
मंथन है
जीवन-मृत्यु का
यदि मैं माँ; हूँ
तो मैं जीना चाहती हूँ
अपने सम्पूर्ण कर्तव्यों के लिए
यदि मैं परित्यक्ता हूँ
तो मैं जीना चाहती हूँ
अपने सत्य के लिए
यदि छीन ली गई है मेरी तथाकथित इज़्ज़त
तो मैं जीना चाहती हूँ
उदाहरण बनना चाहती हूँ
मौन शाप का परिणाम देखना चाहती हूँ
!!!
मेरे आँसू मेरी हार नहीं
मेरी जिजीविषा हैं
क्योंकि हर हिचकी के बाद
एक इंद्रधनुष मेरी वजूद में होता है
...
मैं स्त्री
कृष्ण बनने की कला जानती हूँ
अपने अंदर गणपति का आह्वान करके
अपनी परिक्रमा करती हूँ
मैं स्त्री,
धरती में समाहित अस्तित्व
जिसके बगैर कोई अस्तित्व नहीं
न प्राकृतिक
न सामाजिक
और मेरे आँसू
भागीरथी प्रयास ... !!!
प्रयास
जवाब देंहटाएंधारा के धारा
में समाहित हो
समुद्र बना
ले जाने का ।
सुन्दर ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच 16-06-2016 को चर्चा - 2375 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति सुरैया और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... नारी कभी व्यथा हो ही नहीं सकती ... शक्ति और निर्माण की पहल करने वाली आदिशक्ति है नारी ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है दी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनारी तू नारायणी
जवाब देंहटाएंप्रज्ञा, लावण्या पर मॉसलता नहीं, काया की
पर तू शब्दों की शारदा |