एक विस्फोट
... और शरीर के परखचे
इधर से उधर बिखरे हुए
सारे टुकड़े मिलते भी नहीं !!
लापता व्यक्ति
न जीवित
और ... मृत तो बिल्कुल नहीं !!
खुली आँखों के आगे
एक टुकड़े की तलाश
और इंतज़ार
आँखों की पोरों में सूख जाती है
लुप्त गंगा सी !!
लेकिन उस विस्फोट में,
जहाँ शरीर,
मन के परखचे दिखाई देते हैं
उन्हें न जोड़ पाने की तकलीफ भी
नहीं जोड़ी जा सकती !
दिनचर्या,
पेट की आग,
जीवन के कर्तव्य
और टुकड़ों को सीने की कोशिश ... !!!
अपने मन से तो कोई लापता भी नहीं होता
खुद को देखते हुए
अनजान होकर चलना
त्रासदाई है !
होकर भी ना होने की विवशता
ये होते हैं लापता परखचे
जिनकी न कोई चीख होती है
न कोई आहट
न खुशी
न दर्द
सिर्फ एक सन्नाटा ...
साल,तारीखें ... मन के अंदरूनी परखचों पर लिखे होते हैं
विस्फोट की भयानक आवाज़ें
रिवाइंड,प्ले होती रहती हैं
एक एक टुकड़े
कुछ न कुछ कहते रहते हैं
सुनते हुए बहरा बना आदमी
हँसता भी है
व्यवहारिकता भी निभाता है
लेकिन ... परखचों से मुक्त नहीं होता !!!
मुक्ति की कल्पना भी बेमानी है ... गहरी अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंसच परखचों से मुक्त कहां हो पाता है इंसान।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ण्ण्
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-06-2016) को "योग भगाए रोग" (चर्चा अंक-2380)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जारी रहती है कोशिश
जवाब देंहटाएंसमेटने की बिखरे हुए
टुकड़े फिर भी ।
सुन्दर रचना ।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंखुली आँखों के आगे
जवाब देंहटाएंएक टुकड़े की तलाश
और इंतज़ार
आँखों की पोरों में सूख जाती है
लुप्त गंगा सी !!
- कहाँ मिल पाते हैं टुकड़े जो संपूर्ण को रूप दे सकें !
Bahut gahri baat kahi
जवाब देंहटाएंगहन अहसससों से आपूरित लाज़वाब अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बात।
जवाब देंहटाएंलाशें आवाज़ नहीं करती।
बहुत मर्मस्पर्शी रचना
खुद को देखते हुए
जवाब देंहटाएंअनजान होकर चलना
त्रासदाई है !
होकर भी ना होने की विवशता
ये होते हैं लापता परखचे ...
विवशता जीवन की. सचमुच! बड़ा कठिन है खुद से अंजान होकर जीना