04 नवंबर, 2016

प्रतिनायक




नायक खलनायक के मध्य
होता है एक चरित्र
प्रतिनायक का
घड़ी के पेंडुलम की तरह  ... !!!
कभी वह नायक से भी बढ़कर हो जाता है
कभी इतना बुरा
कि उसकी उपस्थिति भी नागवार लगती है
परिस्थितियों में उलझा
वह करने लगता है उटपटांग हरकतें
कुछ ना सही
तो जोकर बनकर हँसाने लगता है
जीत लेने के लिए सबका विश्वास
बन जाने को सबका नायक  ...

दरअसल वह तुरुप का पत्ता होता है
जब जहाँ जैसी ज़रूरत
वैसा इस्तेमाल !
बिना उसके ज़िन्दगी चलती नहीं
चल ही नहीं सकती
समय,
हुजूम
हमेशा एक सा नहीं होता
और प्रतिनायक हर डाँवाडोल स्थिति में
खरा होता है
नहले पे दहला है उसकी उपस्थिति  ...

लेकिन प्रतिनायक
इसे समझ नहीं पाता
वह कभी खुद को ज़रूरी
तो कभी गैरज़रूरी पाकर
अन्यमनस्क सा हो जाता है !
वह स्वीकार ही नहीं कर पाता
कि वह सामयिक ज़रूरत है
और ज़रूरी होना बहुत मायने रखता है
बिल्कुल रोटी,कपड़ा और मकान की तरह !
कई बार
वह नहीं समझना चाहता
कि अति सर्वत्र वर्जयेत
जैसे,
भूख न हो तो रोटी भी नहीं भाती
लेकिन इससे उसकी ज़रूरत नहीं मिटती
वैसे ही
उसका असामयिक अभिनय
किसी को नहीं भाता
लोग भी दुखी
प्रतिनायक भी दुखी !!!
...
कुछ अच्छा
कुछ बुरा
कुछ हास
इस तालमेल के साथ ज़िन्दगी चले
तभी ठीक है
अन्यथा,
नायक कब खलनायक हो
खलनायक कब नायक बन जाए
कहना
समझना
और उसे सहजता से ले पाना कठिन है

सौ बातों की एक बात -
थोड़ी मिलावट ज़रूरी है दोस्त :)

6 टिप्‍पणियां:

  1. होने और ना
    होने जैसे के
    बीच में भी
    कुछ होता है
    जैसे पुरुष
    और स्त्री के
    बीच में होने
    का जैसा कुछ
    सब कुछ
    आभास ही है
    बहुत कुछ
    आभासी है
    अच्छा लगा
    प्रतिनायक
    हमारे आगे
    पीछे ऊपर नीचे
    आस पास
    दूर कहीं
    हर जगह जो है
    और
    बहुत जरूरी है
    नायक के लिये भी
    और
    खलनायक के लिये भी
    प्र्श्न है अस्तित्व का
    सभी के लिये :)

    बहुत कुछ दिखा दिया आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ह्यूमन कंप्यूटर' = भारतीय गणितज्ञ स्व॰ शकुंतला देवी जी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. सही विश्लेषण। महत्वपूर्ण भी गैरजरूरी भी !

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ अच्छा
    कुछ बुरा
    कुछ हास
    इस तालमेल के साथ ज़िन्दगी चले
    तभी ठीक है
    अन्यथा,
    नायक कब खलनायक हो
    खलनायक कब नायक बन जाए
    कहना
    समझना
    और उसे सहजता से ले पाना कठिन है

    सौ बातों की एक बात -
    थोड़ी मिलावट ज़रूरी है दोस्त

    .. बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  5. इसलिए ... प्रतिनायक होना भी जरूरी है दोनों नायकों के साथ ...
    येही हो मिलावट है ...

    जवाब देंहटाएं

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