02 अप्रैल, 2017

गुज़ारिश




गुज़ारिश है
मेरी मौत के बाद
मेरे पार्थिव शरीर के पास
मेरी अच्छी बातें मत करना
मेरे स्वभाव की सकारात्मक विशेषताओं  का
सामूहिक वर्णन मत करना
...
जो कुछ मेरी चलती साँसों के साथ नहीं था
उसे अपनी जुबां में
दफ़न ही रहने देना
अपनी बेवजह की स्पर्द्धा में
जो कुछ तुम मेरे लिए सोचते
और गुनते रहे
उसे ही स्थायित्व देना !

मेरी कोई भी अच्छाई
जो मेरे होते
कोई मायने नहीं रखती थी
उसे अर्थहीन ही रहने देना
सामाजिकता का ढकोसला मत करना
मेरे मृत शरीर पर
फूल मत चढ़ाना  ....

शिकायत तुम्हें रही हो
या फिर
 शिकायत मुझे रही हो
कौन सही था !
कौन गलत था !
इसकी पेचीदगी बने रहने देना
झूठी कहानियाँ मत गढ़ना
...
यकीन रखो,
मेरी रूह को
तुमसे फिर कोई शिकायत नहीं होगी
तुम्हारी ख़ामोशी
मेरी यात्रा में
एक अनोखा योगदान होगी
तुम्हें भी सुकून होगा
कि
विदा की बेला में
तुमने कोई बनावटी अपनापन नहीं दिखाया  ...

8 टिप्‍पणियां:

  1. मौत के बाद
    की बात अभी
    कौन सोचे

    अभी तो जो
    फूल रखे जा
    रहे हैं उन्हें गिने।

    सुन्दर रचना ।

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  2. Ye bhavnaon ka safar hai sjde me kuchh ikchaon ne ruhani baton ka maan rkha to hoga ......

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  3. बहुत ही मार्मिक वर्णन जीवन के सारभौमिक सत्य का। आपसे निवेदन है मेरी रचना "बेपरवाह क़ब्रे" अवश्य पढ़े। आभार

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  4. अपनापन या तो होता है या नहीं होता..प्रेम है तो है सारे जहाँ के लिए और अगर किसी का प्रेम बंटा हुआ है केवल अपनों के लिए..तो प्रेम है ही नहीं..अस्तित्त्व सदा ही आपको चाहता आया है मौत के पहले भी और मौत के बाद भी..केवल वही सच्चा है और शेष सब महज औपचारिकता...

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  5. सच्चे दिल से निकली सच रहने की चाह ... दिखावा किस के लिए ... काश की कटे सफ़र सकूं से ...

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सैम मानेकशॉ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  7. अपनापन किसी दिखावे का मौहोताज़ नहीं होता, जहां अपनापन ना हो वहाँ दिखावा बहुत खलता हैं।
    http://savanxxx.blogspot.in

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...