कहा था मैंने
शिकारी आएगा
जाल बिछाएगा ...
भ्रमित होकर
फँसना नहीं !
लेकिन शिकारी ने
तुम्हारी आदतों को परखा
पारदर्शी जाल बिछाया
दाने की जगह
खुद जाल के पास बैठ गया
संजीदगी से बोला,
आओ ...
कुछ बातें करें !
आंखों में आंसू भरकर
वह कहानियाँ गढ़ता गया ...
तुम अपनी सच्ची ज़िन्दगी के पन्ने
मोड़ मोड़ कर हटाते गए
उसकी कहानियों में उलझते गए
और एक दिन
शिकारी के जाल में थे तुम !
बिना फँसे अनुभव नहीं होता
यह सोचकर
मैं तुम्हारा सर सहलाती गई
जाल को टटोलकर
काटती गई
लेकिन उसके धागे
तुम्हारे दिलो दिमाग को
महीनता से खुरच गए थे ...
शिकारी का भय
तुम्हारी नींद उड़ा गया था
और मैं ...
लोरी के सारे शब्द भूल गई !
उम्र बीतने लगी इस सोच में
कि
शिकारी को ढूँढूँ
उसके लिए जाल तैयार करूँ
या किसी जादुई मरहम से
सारे भय मिटा दूँ
खरोंच के निशान मिटा दूँ !!
लेकिन
जो हो जाता है
वह तो रह ही जाता है।
चेहरा सहज हो
चर्चा में शिकारी न हो
आगे के रास्तों पर कदम हो
फिर भी
मन और दिमाग
शिकारी और अपनी भूल को
याद रखता है ...
तुम्हारे अनमने चेहरे का दर्द
मेरे एकांत में बड़बड़ाता है
कहा था न ?
सच है शिकारी का काम है शिकार करना वह उसके सभी गुर जानता हैं लेकिन अति सहज और भोले ही फंसते हैं जाल में
जवाब देंहटाएंबहुत सही ...
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी आज रविवार 16 अप्रैल 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।
जवाब देंहटाएंचर्चाकार
"ज्ञान द्रष्टा - Best Hindi Motivational Blog
उम्र बीतने लगी इस सोच में
जवाब देंहटाएंकि
शिकारी को ढूँढूँ
उसके लिए जाल तैयार करूँ
या किसी जादुई मरहम से
सारे भय मिटा दूँ
खरोंच के निशान मिटा दूँ !!
ख़ूबसूरत पंक्तियाँ , आभार।
फिर एक अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-04-2017) को
जवाब देंहटाएं"चलो कविता बनाएँ" (चर्चा अंक-2620)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'