नहीं अर्जुन नहीं
मै तुम्हारी तरह
गांडीव नीचे नहीं रख सकती
ना ही भीष्म की तरह
वाणों की शय्या पर
महाभारत देख सकती हूँ
...
कर्ण तुम मेरे भीतर जीते हो
लेकिन मैंने अपनी दानवीरता पर
थोड़ा अंकुश लगाया है
एड़ी उचकाकर देख रही हूँ
तुम कहाँ सही थे
और कहाँ गलत !!!
कृष्ण
तुम मेरे सारथि रहो
यह मैंने हमेशा चाहा है
... पर मुझे बचाने के लिए
कर्ण के रथ से दूर मत ले जाना
मैं जीत अपने सामर्थ्य से चाहती हूँ
और तुम्हारा साथ होना
वैसे भी मेरी जीत है !
आवेश में मैं कोई भी प्रण नहीं लूँगी
जिसके साथ ब्रह्मांड हो
उसे आवेश में आने की ज़रूरत भी नहीं
सिर्फ लक्ष्य मेरे आगे है
सिर्फ लक्ष्य
शंखनाद करो कृष्ण
शंखनाद करो ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-07-2017) को "शंखनाद करो कृष्ण" (चर्चा अंक 2675) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंअपने सामर्थ्य पर ही भरोसा होना चाहिए ... सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह....लाज़वाब , हर मानव में चलता रहता है महाभारत हम अपनी जरूरत के हिसाब से स्वयं का किरदार तय करते है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
वाह ! मन के द्वंद्व की सार्थक अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंजीवंत शंखनाद के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसमय के साथ भूमिकाऐं भी बदलती हैं। सुन्दर तार्किक सृजन। वैचारिक मंथन की भावभूमि का निर्माण करती उत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंजिसके सारथि कृष्ण हो सदा ... उसको किसी की भी की जरूरत ...
जवाब देंहटाएंगहरे भाव ...
आवेश में मैं कोई भी प्रण नहीं लूँगी
जवाब देंहटाएंजिसके साथ ब्रह्मांड हो
उसे आवेश में आने की ज़रूरत भी नहीं
Behad sashkt bhav
आवेश में मैं कोई भी प्रण नहीं लूँगी
जवाब देंहटाएंजिसके साथ ब्रह्मांड हो
उसे आवेश में आने की ज़रूरत भी नहीं
सिर्फ लक्ष्य मेरे आगे है
सिर्फ लक्ष्य
शंखनाद करो कृष्ण
शंखनाद करो ...