22 जुलाई, 2017

शंखनाद करो कृष्ण




नहीं अर्जुन नहीं
मै तुम्हारी तरह
गांडीव नीचे नहीं रख सकती
ना ही भीष्म की तरह
वाणों की शय्या पर
महाभारत देख सकती हूँ
...
कर्ण तुम मेरे भीतर जीते हो
लेकिन मैंने अपनी दानवीरता पर
थोड़ा अंकुश लगाया है
एड़ी उचकाकर देख रही हूँ
तुम कहाँ सही थे
और कहाँ गलत !!!

कृष्ण
तुम मेरे सारथि रहो
यह मैंने हमेशा चाहा है
... पर मुझे बचाने के लिए
कर्ण के रथ से दूर मत ले जाना
मैं जीत अपने सामर्थ्य से चाहती हूँ
और तुम्हारा साथ होना
वैसे भी मेरी जीत है !

आवेश में मैं कोई भी प्रण नहीं लूँगी
जिसके साथ ब्रह्मांड हो
उसे आवेश में आने की ज़रूरत भी नहीं

सिर्फ लक्ष्य मेरे आगे है
सिर्फ लक्ष्य
शंखनाद करो कृष्ण
शंखनाद करो ...

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-07-2017) को "शंखनाद करो कृष्ण" (चर्चा अंक 2675) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. अपने सामर्थ्य पर ही भरोसा होना चाहिए ... सुन्दर प्रस्तुति .

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  4. वाह्ह्ह....लाज़वाब , हर मानव में चलता रहता है महाभारत हम अपनी जरूरत के हिसाब से स्वयं का किरदार तय करते है।
    बहुत सुंदर रचना।

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  5. वाह ! मन के द्वंद्व की सार्थक अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !

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  6. जीवंत शंखनाद के लिए बधाई ।

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  7. समय के साथ भूमिकाऐं भी बदलती हैं। सुन्दर तार्किक सृजन। वैचारिक मंथन की भावभूमि का निर्माण करती उत्कृष्ट रचना।

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  8. जिसके सारथि कृष्ण हो सदा ... उसको किसी की भी की जरूरत ...
    गहरे भाव ...

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  9. आवेश में मैं कोई भी प्रण नहीं लूँगी
    जिसके साथ ब्रह्मांड हो
    उसे आवेश में आने की ज़रूरत भी नहीं
    Behad sashkt bhav

    जवाब देंहटाएं
  10. आवेश में मैं कोई भी प्रण नहीं लूँगी
    जिसके साथ ब्रह्मांड हो
    उसे आवेश में आने की ज़रूरत भी नहीं

    सिर्फ लक्ष्य मेरे आगे है
    सिर्फ लक्ष्य
    शंखनाद करो कृष्ण
    शंखनाद करो ...

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एहसास

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