अक्सर
हम लोगों से नहीं
अपनेआप से भागते हैं
कहीं न कहीं डरते हैं
अपनी विनम्रता से
अपनी सहनशीलता से
अपनी दानवीरता से
अपनी ज़िद से
अपने आक्रोश से
अपने पलायन से ...
बस हम मानते नहीं
तर्क कुतर्क की आड़ में
करते जाते हैं बहस
...
हम हारना नहीं चाहते
हम जीत भी नहीं पाते
क्योंकि हम
अपनी हर अति" के आगे
घुटने टेक
खुद को सही मान लेते हैं !!!
कितनी सही बात कही है कि हम अपनेआप से डरते हैं फिर भी खुद को सही साबित करने के लिए तर्क कुतर्क करते हैं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही ...
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं !!
सही कहा
जवाब देंहटाएंभागना पड़ता है कई बार पर हमेशा नहीं भाग पाते हैं
जवाब देंहटाएंकभी कभी गलतफहमी हो जाती है और पकड़े जाते हैं ।
बहुत सुन्दर।
अपनी विनम्रता से भागते हैं....
जवाब देंहटाएंकितनी गहराई से सोचती हैं आप...
बहुत सटीक ...
अपने आप से बचना है बहुत मुश्किल -सामना करना और अधिक मुश्किल .
जवाब देंहटाएंगहन यथार्थपरक चिंतन। सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगहन यथार्थपरक चिंतन। सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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