ये इत्ता बड़ा कागज़
कित्ती बड़ी नाव बनेगी न
पापा, अम्मा, भईया, दीदी
पूरा का पूरा कुनबा बैठ जाएगा
फिर हम सात समंदर पार चलेंगे
... रहने नहीं रे बाबा
घूमने चलेंगे।
चलो इस कागज़ को रंग देते हैं
बनाते हैं कुछ सितारे
सात रंगों से भरी नाव
कित्ती शानदार लगेगी
...
फिर हम सात समंदर पार चलेंगे
... रहने नहीं रे बाबा
घूमने चलेंगे।
अर्रे
इस कागज़ को बीचोबीच
किसने फाड़ दिया
रंग भी इधर से उधर हो गए
अब सात समंदर पार कैसे जाएँगे ?
घूमना ही था न
रहने की बात तो कही ही नहीं थी !
खैर,
चलो न
दो छोटी छोटी नाव ही बना लें
कौन किसमें बैठेगा
बाद में सोचेंगे
फिर कागज़ फटे
उससे पहले
हम सपनों को पूरा कर लें
सात समंदर पार चलें
... रहने नहीं रे बाबा
घूमने चलेंगे।
बहुत सुन्दर। कागज के सपने ।
जवाब देंहटाएं... रहने नहीं रे बाबा
जवाब देंहटाएंघूमने चलेंगे .... बहुत ही जबरदस्त 👍
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन लोकनायक जयप्रकाश नारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबचपन का अपना ही संसार
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