जब कहीं कोई हादसा होता है
किसी को कोई दुख होता है
परिचित
अपरिचित
कोई भी हो
जब मेरे मुँह से ओह निकलता है
या रह जाती है कोई स्तब्ध
निःशब्द आकुलहट
उसी क्षण मैं मन की कन्दराओं में
दौड़ने लगती हूँ
कहाँ कहाँ कौन सी नस
दुख से अवरुद्ध हो गई"
कहाँ मौन सिसकियाँ अटक गई
संवेदनाओं के समंदर में
अथक तैरती जाती हूँ
दिन,महीने,वर्षों के महीन धागे पर
चलती जाती हूँ निरंतर
रिसते खून का मलाल नहीं होता
.... !!!
लेकिन,
कई बार
कितनों के दुखद समाचार
मुझे उद्वेलित नहीं करते
मन के कसे तार
टूटते नहीं
किंकर्तव्यविमूढ़ मैं
मन के इस रेगिस्तान के
तपते अर्थ ढूँढती हूँ
जिसके आगे
तमाम नदियाँ शुष्क हो जाती हैं
खुद को झकझोर कर
खुद ही पूछती हूँ
क्या मैं इतनी हृदयहीन हूँ ?
हो सकती हूँ ?
चिंतन का महाप्रलय अट्टाहास करता है
....
नज़रें घुमाओ
देखो
जानो
समझो
कि हर संवेदना
कहीं न कहीं हृदयहीन होती है
अब इसे वक़्त की माँग मान लो
या ईश्वरीय प्रयोजन
पर है यह शाश्वत कटु सत्य ... !!!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, याद दिलाने का मेरा फ़र्ज़ बनता है ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव। सभी के साथ होता होगा शायद ऐसा।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"मिट्टी के ही दिये जलाना" (चर्चा अंक 2758)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार १६ अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या बात है ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबात खरी है ! संवेदनाएँ भी कभी कभी संवेदनहीन, सुन्न सी हो जाती हैं !
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि जी -------बहुत दिनों के बाद सूक्ष्म चिंतन से भरी रचना पढ़कर मन को रूहानी आनंद मिला है | शायद आपको याद हो मैं शब्द नगरी पर आपकी नियमित पाठिका थी | आपका अलग अंदाज और चिंतन मुझे बहुत पसंद है | आपके ब्लॉग पर कर बहुत ख़ुशी हो रही है | सादर , सस्नेह शुभकामना प्रेषित करती हूँ आपको |
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं का साक्षी जग जाता है जब भीतर कोई तो उनका होना और न होना दोनों ही दूर नजर आते हैं..
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