मौत से जूझकर
जो बच गया ...
उसके खौफ,
इत्मीनान,
फिर खौफ को
मैं महसूस करती हूँ !
कह सकती हूँ
कि यह एहसास मैंने भोगा है
एक हद तक
इसकी शाब्दिक व्याख्या हो सकती है .....
पर वह
... जो मृत्यु से जूझता रहा
दम घुटने
साँस ले पाने की जद्दोजहद से गुजरता रहा
फिर !!!
वह नहीं रहा !
उसके जीवन मृत्यु संघर्ष के मध्य
क्या चलता रहा
चला
या नहीं चला !
सितार के कसे तार के
टूट जाने की स्थिति सी
होती है अपनी मनःस्थिति
....
मृत्यु को जीने का प्रयास
अजीब सी बात है
पर
...!
ढूँढती रहती हूँ वह एहसास
वह शब्द
और ....
जाने कितनी बार उजबुजाते हुए मरती हूँ
....
!!!!
बहुत सुंदर भावनाएं
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (19-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"मधुर वाणी बनाएँ हम" (चर्चा अंक 2762)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दीवा जलाना कब मना है ? - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंमृत्यु को जीने का अहसास..कितनी अनोखी चाह..ध्यान की गहराई में यह सम्भव है शायद..
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