26 अक्तूबर, 2017

यदि तुम चाहो !!!




बैठो
कुछ खामोशियाँ मैं तुम्हें देना चाहती हूँ
वो खामोशियाँ
जो मेरे भीतर के शोर में
जीवन का आह्वान करती रहीं
ताकि
तुम मेरे शोर को पहचान सको
अपने भीतर के शोर को
अनसुना कर सको !

जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा
कभी बेहद लम्बी होती है
कभी बहुत छोटी
कभी  ...
न जीवन मिलता है
न मृत्यु !!

जन्म ख़ामोश भय के आगे
नृत्यरत शोर है
मृत्यु
विलाप के शोर में
एक खामोश यात्रा  ...
शोर ने मुझे बहुत नचाया
ख़ामोशी ने मेरे पैरों में पड़े छालों का
गूढ़ अर्थ बताया  ...

बैठो,
कुछ अर्थ मैं तुम्हें सौंपना चाहती हूँ
यदि  ...
यदि तुम चाहो !!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-10-2017) को
    "डूबते हुए रवि को नमन" (चर्चा अंक 2770)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 1नवम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. एक ऐसी कविता जो दिल और दिमाग दोनो पर हावी हो गयी.
    बधाई स्वीकार करें.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार

    जवाब देंहटाएं

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 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...