गुल्लक को हिलाते हुए
चन्द सिक्के खनकते थे
उनको गुल्लक के मुंह से निकालने की
जो मशक्कत होती थी
और जो स्वाद अपने मुंह में आता था
उसकी बात ही और थी
वह रईसी ही कुछ और थी !
....
अब 50 पैसे की क्या बात करें
5, 10 रुपये के सिक्के
भिखारियों को देने होते हैं
!!!
गुल्लक में अब रुपए डाले जाते हैं
उसमें भी
50, 100 में मज़ा नहीं आता
जितना भी निकले कम ही लगता है
अब यह बात भी बेमानी हो गई है
कि बूंद बूंद से घट भरत है
बेचारा घट !
या तो खाली का खाली रहता है
या फिर सांस लेने को उज्बुजाता है
बेचारा गुल्लक !
पहले कितना हसीन हुआ करता था
!!!