कभी कभी मन करता है,
इसके उसके सबके शब्द चुरा लूँ
और अपनी भावनाओं के बालों को सुलझा
उन्हें क्लिप बना टांक दूँ !
कई बार धूल की तरह
उड़ती नज़र आती हैं भावनाएं,
जब तक समझूँ
आंखों में जाकर बेचैन कर देती हैं ।
कितनी सारी कोशिशें होती हैं
उन धूलकणों को हटाने की
लेकिन वे आँखों की गहरी नदी में
बना लेती हैं अपनी जगह
किसी और दिन बह निकलने के लिए
...
उस दिन के लिए मेरे पास शब्द होने चाहिए न
ताकि मैं उन कणों की गाथा लिख सकूँ !
कभी चुरा लूँ,
तो क्षमा कर देना
धूलकणों सी उड़ती मेरी स्थिति को
दे देना आशीष
कि जा तेरे शब्दकोश बड़े हों ...
वाह बहुत सुन्दर। शब्द चोरना नया काँसेप्ट।
जवाब देंहटाएंशब्दों से ही यदि किसी को राहत मिल सकती होती तो भावनाओं को उड़ने की कभी जरूरत ही न होती...
जवाब देंहटाएंअहा !! अद्भुद
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 6 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1238 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 06.12.20-18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3177 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुन्दर रश्मि प्रभा जी !
जवाब देंहटाएंकिसी के शब्द चुराने की क्या आवश्यकता है? नयनों की भाषा से सब कुछ कहा जा सकता है.
बहुत अच्छा लिखा है। ऐसे ही लिखते रहिए। हिंदी में कुछ रोचक ख़बरें पड़ने के लिए आप Top Fibe पर भी विजिट कर सकते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावन गूंथ बांध दी शब्दों की।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना।
शब्दों का संसार विराट है फिर भी अनंत नही है नये शब्द भी अस्तित्व बनाते हैं पर एक छोटी सी परिधी में तो शब्द तो हर रचनाकार कहीं से उठाता ही है चोरी नही, नई परहन से सजाना ही तो रचनाकार का कौशल है।
तो यही कहूंगी की चुराते रहिये और सजा संवार कर हमें पढवाते रहिये ।
सुन्दर भावाभिव्यक्ति।
सस्नेह।
कभी-कभी लघु कथा भी बड़ी कहानियों पर भारी पड़ जाती है, जो अपने पास हैं वही बहुत कुछ कह सकते हैं !
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