कभी दर्द
कभी खुशी
कभी प्यार
कभी ख्वाब
मैं लिख लिया करती थी,
टूटे फूटे शब्द ही सही,
लगता था,
जी लिया दिन ।
एक दिन कुछ धुआँ सा दिखा,
और हवा के साथ पतंग की तरह उड़ते
कागज़ के कुछ टुकड़े
...जंल रहे थे मेरे एहसास,
जाने किस दिशा में उड़ रहे थे,
न मैं आग बुझा सकी,
न पकड़ पाई उन टुकड़ों को
खड़ी रही अवाक !
...
क्या सिर्फ अवाक ?
नहीं,
मेरी अवाक स्थिति ले रही थी संकल्प
किसी मन्त्र की तरह गूंज रहे थे ये वाक्य
"अपराध को सहते जानेवाला भी
अपराधी ही होता है ।
जो स्वयं की रक्षा नहीं कर सकता,
उसकी रक्षा ईश्वर भी कब तक करेंगे ।"
और मेरे सामने मेरा "मैं" बोल पड़ा,
बस ...अब बस ।
दर्द,खुशी,ख्वाब,प्यार
सब मेरे गले लग गए,
और कहा,
अब लिखो,
तब तक लिखो,
जब तक अग्नि तुम्हारे राख हुए शब्दों का रूप न ले ले,
जब तक हवाएं शब्द शब्द न बहने लगे,
जब तक दिशाएं प्रतिध्वनित हो
तुम तक न लौटें
और मैंने कहा,
आमीन ।
आमीन ! सही है, ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं....दिशाएं,अनल और पवन भी तब साथ देने को आतुर हो जाती हैं...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 08 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-12-2018) को "भवसागर भयभीत हो गया" (चर्चा अंक-3178) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेजोड़ सृजन 🙏🙏
जवाब देंहटाएंअतुल्यनीय , शानदार
जवाब देंहटाएंक्या सिर्फ अवाक ?
नहीं,
मेरी अवाक स्थिति ले रही थी संकल्प
किसी मन्त्र की तरह गूंज रहे थे ये वाक्य
"अपराध को सहते जानेवाला भी
अपराधी ही होता है ।
https://eksacchai.blogspot.com/2018/12/kumbhkarnrahul.html