क्या हुआ
यदि द्रौपदी का चीरहरण हुआ
और सभा बेबस चुप रही ?!
क्या हुआ
यदि सीता वन में भेज दी गईं
उसके बाद क्या हुआ,
यह अयोध्या क्यों सोचती !
प्रश्न उठाया राम ने,
तो पूरी सभा अकुलाई चुप रही
तो क्या हुआ ?
सीता धरती में गईं,
मान लो, होनी तय थी
बहस कैसी !!
क्या हुआ
यदि सोई यशोधरा को छोड़
सिद्धार्थ चले गए ?
राहुल और यशोधरा के पास महल रहा,
स्वादिष्ट भोजन रहा,
समाज ने क्या प्रश्न उठाये होंगे,
इस व्यर्थ बात पर कैसी माथापच्ची
तुम्हारा क्या गया जो तुम रोओ !
कृष्ण गोकुल से चले गए,
मथुरापति बने,
तो तुम्हें किस बात की शिकायत है ?
युग बीत जाने के बाद,
किसी प्रश्न,उत्तर,अनुमान का
क्या औचित्य ?
कोई ग़लत नहीं बंधु,
न हिंसक, ना अहिंसक !
तुम्हारे "हाँ" या "ना" को ही क्यों सुना जाए ?
सबकी अपनी सोच है,
अपने हिस्से की सहमति,असहमति है ।
झूठ बोलना पाप है कहते हुए
हम कितने सारे झूठ बोलते हैं ...
बोलते हैं न ?
और अपनी समझ से वह वक़्त की मांग थी,
तो दूसरे के झूठ पर हाय तौबा क्यों,
उसके आगे भी वक़्त है ही न ?!
तुम्हारी बेबसी बेबसी
दूसरे की बेबसी नाटक,
हद है बंधु, हद है,
शांत हो जाओ,
न प्रश्नों की भरमार से किसी को घेरो
न उत्तर दो,
यकीन रखो
सबको समय समझाएगा !!!
समय सबको समझाता है हमेशा पर आदमी उतने पर ही ध्यान देता है जिससे उसका काम निकलता है बाकि समझाता रहे समय :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ख़ूब आदरणीया
जवाब देंहटाएंसादर
यकीन रखो
जवाब देंहटाएंसबको समय समझाएगा... बिलकुल सही, सच से रूबरू कराती, बहुत सुन्दर रचना
मंजु मिश्रा
www.manukavya.wordpress.com
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-04-2019) को "वो फर्स्ट अप्रैल" (चर्चा अंक-3292) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
समय के आगे किसकी चली है..काल ही महाकाल है जो एक दिन सबको निगल जाता है..यह सारा अभिनय उसकी ही लीला तो है...
जवाब देंहटाएंसमय को कौन समझाए
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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