मत करो नारी की व्याख्या,
वह अनन्त है,
विस्तार है,
गीता सार है ...
शिव की जटा माध्यम बनती है,
तब जाकर वह पृथ्वी पर उतरती है ।
पाप का घड़ा भर जाए,
तो सिमट जाती है,
शनैः शनैः विलुप्त सी हो जाती है ।
सावधान,
वह विलुप्त दिखाई देती है,
होती नहीं,
कब,किस शक्ल में
वह अवतरित होगी,
जब तक समझोगे,
विनाश मुँह खोले खड़ा होगा,
और तुम !!!
तब भी इसी प्रश्न में उलझे रहोगे,
ऐसा क्यों हुआ ??!!
जवाब देने का साहस रखो
तो यह भी तय है
कि गंगा सदृश्य स्त्री
क्षमारूपिणी होगी,
मातृरूपेण होगी ।
शांत भाव लिए
हो जाएगी-
अन्नपूर्णा,सरस्वती,लक्ष्मी
तुलसी बन घर-आँगन को,
सुवासित करेगी ...
दम्भयुक्त उसकी व्याख्या मत करो,
वह हाथ नहीं आएगी,
रहस्यमई सी,
ऋतुओं के रहस्य रंगों में घुल जाएगी,
तुम जबतक उसे पहचानोगे,
वह बदल जाएगी ।
सटीक।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-03-2019) को "आँसुओं की मुल्क को सौगात दी है" (चर्चा अंक-3272) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 92वां जन्मदिन - वी. शांता और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंनारी के विराट रूप का बोधा कराती सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंबोध कराती
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 13 मार्च 2019 को साझा की गई है..
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।
बहुत हो चुका कोमलता का गान,
जवाब देंहटाएंतुझे अब रौद्र रूप, दिखलाना होगा.
रक्त-बीज से, हर दानव को,
जड़ से तुझे, मिटाना होगा.
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसादर
वाह सटीक शोर्य से कहा सुंदर सत्य।
जवाब देंहटाएंअनुपम।
मत करो नारी की व्याख्या। सही बात है। नारी की व्याख्या वाकई असंभव है। जब तक उसे पहचानाेगे तब तक बदल जाएगी। क्या बात है। सादर।
जवाब देंहटाएंऋतुओं के रहस्य रंगों में घुल जाएगी,
जवाब देंहटाएंतुम जबतक उसे पहचानोगे,
वह बदल जाएगी ।
बहुत सुंदर रचना .....