जब तुम
तुम्हारा मन
तुम्हारा दिमाग
झंझावातों के मध्य रास्ता ढूंढता है,
जब तुम्हारी ही ज़रूरत सबको होती है,
तो धरती का ज़र्रा ज़र्रा तुम्हारे साथ होता है,
उस रास्ते के व्यवधान को
मिटाने की दुआएं लिए,
एक संवेदनशील वर्ग होता है,
तुम पर कोई आंच न आये,
इसके लिए जो साम दाम दंड भेद का
मार्ग अपनाता है,
उसे तुम कभी अनदेखा,
अनसुना मत करो ।
क्रिकेट का मैच हो
या ज़िन्दगी का मैच,
उस समय खिलाड़ी ही उतरता है मैदान में
और उसकी जीत
हमारी जीत होती है,
उसकी हार,
हमारी हार ...!
कोई और बल्ला नहीं उठाता,
ना ही कैच लेता है,
लेकिन थरथराती साँसों के संग
सब उसी पर नज़रें टिकाए रहते हैं ।
कुछ भी कहनेवाला
न कभी सही था,
ना होगा
पर साथ चलनेवाला
हमेशा सही होता है ।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-03-2019) को "शिव जी की त्रयोदशी" (चर्चा अंक-3264) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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महाशिवरात्रि की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दुआओं के साथ चली आती हैं अनंत शक्ति की लहरियां..और अदृश्य हाथ सहलाते हैं हर चोट को जो अन्याय का सामना करने में खानी पड़ती है
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जवाब देंहटाएंपावन शिवरात्री की आप को शुभकामनाएं....
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
05/03/2019 को......
[पांच लिंकों का आनंद] ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खूब.... ,यथार्थ
जवाब देंहटाएंजब तुम्हारी ही ज़रूरत सबको होती है,
जवाब देंहटाएंतो धरती का ज़र्रा ज़र्रा तुम्हारे साथ होता है,
उस रास्ते के व्यवधान को
मिटाने की दुआएं लिए,
एक संवेदनशील वर्ग होता है,
तुम पर कोई आंच न आये,
इसके लिए जो साम दाम दंड भेद का
मार्ग अपनाता है,
बहुत सुन्दर सार्थक एवं चिन्तनीय रचना...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंतुम पर कोई आंच न आये,
जवाब देंहटाएंइसके लिए जो साम दाम दंड भेद का
मार्ग अपनाता है,
उसे तुम कभी अनदेखा,
अनसुना मत करो ।
वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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