08 जून, 2019

नहीं चाहिए कोई न्याय



हमें निष्कासित कर दो इस समाज से
हम वीभत्स शब्दों
और घटनाओं से बुरी तरह हिल जाते हैं,
बीमार हो जाते हैं !
नहीं चाहिए कोई न्याय,
उम्मीद ही शेष नहीं रही ।
मुद्दा, बहस और शून्य निष्कर्ष के अतिरिक्त,
कुछ भी नहीं रहा हमारे पास ।
हम नहीं कर सकते बड़ी बड़ी बातें,
सिर्फ कुछेक उदाहरणों के सहारे
नहीं जी सकते,
ज्ञान लेकर क्या होगा?
और कितनी सहनशीलता बढ़ानी होगी?
कैसे मन को एकाग्र करें,
ध्यान में लीन हो जायें,
जब किसी की चीख
हथौड़े की तरह
दिल और दिमाग पर पड़ती है !
नहीं है इतना सामर्थ्य,
कि कभी आदमी मौत के घाट उतारे
कभी प्रकृति
और हम भाषण दें
कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ का असर है,
मीडिया द्वारा परोसे गए दृश्यों का परिणाम है,
आधुनिकता की अंधी दौड़ का असर है !!!
जो भी हो,
हर कोई भुगत रहा है
लेकिन रोकने को कोई तत्त्पर नहीं,
सम्भवतः हिम्मत भी नहीं ।
कौन खुद को आग में डाले,
जब तक अपने नसीब में पानी है,
सब ठीक है ।
लेकिन हम ठीक नहीं,
बहुत बीमार हैं,
बीमार होते जा रहे
बहुत भयानक सपने आते हैं
डर डर के मुस्कुराना,
मुश्किल होता जा रहा है ।
क्या कहूँ,
अपने बच्चे का सर जब सहलाती हूँ
तब जाने किसका घायल बच्चा
मेरे कान में कहता है
- मुझे बचा लो !!!
मैं बेवजह निर्मम होती जा रही हूँ,
सबकुछ अनसुना कर दुआओं के बोल बुदबुदा रही हूँ,
तूफानों के बीच,
अपने पेट की भूख मिटा रही हूँ
...!!!
हमें  निष्कासित कर दो,
हम इस मूक,बहरे समाज में रहने योग्य नहीं रहे ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी अपनी आशायें अपने अपने न्याय अपना अपना समाज :) जरूरी भी नहीं समझना होने देना अपने हाथ में जब नहीं।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/06/2019 की बुलेटिन, " ब्लॉग बुलेटिन - ब्लॉग रत्न सम्मान प्रतियोगिता 2019 “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बुद्ध ने ढाई हजार वर्ष पहले कहे थे यही वचन, जीवन दुःख है, आगे कहा,दुःख का कारण है, कारण का निवारण है और एक ऐसी दशा भी है जहाँ कोई दुःख नहीं है, नानक ने भी कहा, नानक दुखिया सब संसार..हम अभी पहली सीढ़ी पर ही खड़े हैं, दुःख है इसका पता हमें चल गया है..अब आगे भी हमें ही जाना होगा

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  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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