एक माँ,
या एक पिता,
जब अपनी चुप्पियों का दौर पूरा करके,
अपने बच्चों की दूसरी ज़िन्दगी का
साक्ष्य बनते हैं,
और उनकी ज़िन्दगी में देखते हैं,
वही अनकहा तूफ़ान,
तब वे सही निर्णय नहीं ले पाते !
उनको कभी लगता है
-समय पर विरोध ज़रूरी है,
कभी लगता है,
विरोध से होगा क्या ?!
समाज में बदलाव नहीं आया,
हममें बदलाव नहीं आया
- सिवाए एक चुप के,
तो यहाँ क्या बदलेगा !!
बच्चे का मन अकुलाता है
उनकी चुप व्यथा से,
वह गरजता है,
आग उगलता है,
आँसू बहाता है ...
फिर अपने बच्चे की ख़ातिर,
ओढ़ लेता है वही व्यथित खामोशी,
जो उसे विरासत में मिली होती है !
जी हां विरासत में तो यही मिला है
जवाब देंहटाएंसामयिक रचना
विरासत का गर्व भी तो होता है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जमीनी काम से ही समस्या का समाधान : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
जवाब देंहटाएंजीवन अपने आप को दोहराता है बार-बार...
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