04 जनवरी, 2020

चेतावनी




धू धू जलती हुई जब मैं राख हुई
तब उसकी छोटी छोटी चिंगारियों ने मुझे बताया,
बाकी है मेरा अस्तित्व,
और मैं चटकने लगी,
संकल्प ले हम एक हो गए,
बिल्कुल एक मशाल की तरह,
फिर बढ़ चले उस अनिश्चित दिशा में,
जो निश्चित पहचान बन जाए ।
मैं  नारी,
धरती पर गिरकर,
धरती में समाहित होकर,
बंजर जमीन पर एक तलाश लिए,
मैंने महसूस किया,
इस धरती सी बनना है,
तभी समयानुसार हर रूप सम्भव है,
और मैंने धरती को प्रेरणास्रोत मान,
कई हथेलियों में मिट्टी का स्पर्श दिया,
कभी प्रत्यक्ष,
कभी कलम के माध्यम से,
कभी सपनों का आह्वान करके ...
जंगल की आग,
हमारा स्वर है - 
अट्टाहास किया
तो कान के भीतर चिंगारियां होंगी,
इसे हमारी चेतावनी समझ,
विकृत ठहाके लगाने से पूर्व,
हज़ार बार सोचना ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 04 जनवरी 2019 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  2. मशाल जीवित रहे ताकि खौफ बना रहे। सुन्दर।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 05 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे किसी के क्या मजाल !
    बहुत सही ..

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 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...