एक चवन्नी बोई थी मैंने,
चुराई नहीं,
पापा-अम्मा की थी,
बस उठाई और उसे बो दिया
इस उम्मीद में
कि खूब बड़ा पेड़ होगा
और ढेर सारी चवन्नियाँ लगेंगी उसमें
फिर मैं तोड़ तोड़कर सबको बांटूंगी ...
सबको ज़रूरत थी पैसों की
और मेरे भीतर प्यार था
तो जब तक मासूमियत रही
बोती गई -इकन्नी,दुअन्नी,चवन्नी,अठन्नी ... ।
फिर एक दिन,
मासूमियत ने हकीकत की आंधी चखी
बड़ा ही कसैला स्वाद था
ढूंढने लगी वह चवन्नी
जिसको लेकर
जाने कितने सपने संजो लिए थे ।
कहीं नहीं मिली वह चवन्नी,
जाने धरती ने उसे कहीं छुपा दिया
या फिर मैं ही वह जगह भूल गई
प्यार की तलाश में बड़ी दूर निकल गई ।
जीवन की सांझ है,
फिर भी यह यकीन ज़िंदा है
प्यार होता तो है
होगा कोई कहीं,
जो मेरी चवन्नियाँ को ढूंढ रहा होगा ...
एक
सिर्फ एक
खोई हुई चवन्नी मिल जाये
तो गुल्लक में डालके भूल जाऊँगी ...
और गुल्लक तो वह ढूँढ ही लेगा ।।
वाह। बस चवन्नी खोटी ना हो :)
जवाब देंहटाएंजीवन की सांझ है,
जवाब देंहटाएंफिर भी यह यकीन ज़िंदा है
प्यार होता तो है
होगा कोई कहीं,
जो मेरी चवन्नियाँ को ढूंढ रहा होगा ...
प्यार में बड़ी ताकत होती हैं, भूला-भटका सबको प्यार खींच लाता है पास
बहुत सुन्दर