ओ मेरी मंडली
(अपने अपने नाम को विश्वास के साथ रख लो मेरी मंडली लिस्ट में),
आओ चाय की टपरी पर पैदल चलते हैं,
बारिश के जमा पानी के छींटें उड़ाते,
ठहाके लगाते ...
एक प्लेट पकौड़े से क्या ही तृप्ति मिलेगी हमें !
दो प्लेट मंगवाते हैं,
साथ में लकड़ी के दहकते कोयले पर
पकते, भुनते भुट्टे ।
काले मेघों की गर्जना
और हमारी मंडली
गाते हैं कुछ पुराने गीत
पुरवा और पछिया हवा हमें छेड़ जाए
और हम
खुद बेबाक हवा बन जाएं
चाय की केतली से निकलती
भाप की तरह !!
रश्मि प्रभा