30 जुलाई, 2024

ओ मेरी मंडली

 ओ मेरी मंडली 

(अपने अपने नाम को विश्वास के साथ रख लो मेरी मंडली लिस्ट में),

आओ चाय की टपरी पर पैदल चलते हैं,

बारिश के जमा पानी के छींटें उड़ाते,

ठहाके लगाते ...

एक प्लेट पकौड़े से क्या ही तृप्ति मिलेगी हमें !

दो प्लेट मंगवाते हैं,

साथ में लकड़ी के दहकते कोयले पर 

पकते, भुनते भुट्टे ।

काले मेघों की गर्जना 

और हमारी मंडली 

गाते हैं कुछ पुराने गीत 

पुरवा और पछिया हवा हमें छेड़ जाए 

और हम 

खुद बेबाक हवा बन जाएं 

चाय की केतली से निकलती 

भाप की तरह !!


रश्मि प्रभा

29 जुलाई, 2024

शिव

 हे शिव,

तुम जन्म से मेरे साथ थे

शायद तभी...

नहीं, नहीं 

निस्संदेह तभी

मुझे यह विश्वास रहा 

कि तुम हर जगह, 

हर घड़ी मेरे आस-पास उपस्थित हो !


उपस्थिति का अर्थ यह बिल्कुल नहीं

कि मेरे हिस्से हमेशा कथित जीत रही

बल्कि मुंह के बल गिरी 

पर एक सबक के साथ

मेरी हार भी

मेरी अगली जीत का 

मज़बूत आधार बनी।


तुम्हारी पूजा करते हुए

लोगों द्वारा निर्धारित 

तुम्हें प्रसन्न करनेवाली सामग्रियां

मेरे पास नहीं थीं !

बेलपत्र मिला

तो धतूरा नहीं 

कई बार सफ़ेद क्या,

कोई फूल नहीं मिला

बिना किसी तय विधि विधान के

मैंने पूजा की - सिर्फ निष्ठा से ।


मेरी आंखें शंखनाद बनीं

रक्त वाहिकाओं में दौड़ता 

ॐ का अनवरत उच्चार

अहर्निश जलता दीप बना 

और बेलपत्र,अक्षत,

भांग, धतूरा,नैवेद्य में काया ढल गई...

अंतर्मन अभिषेक का गंगाजल हुआ

और निर्विघ्न संपन्न होती रही 

मेरी रीतिहीन पूजा !


हे शिव,

जब तुम्हें शिकायत नहीं हुई

तो किसी और की आलोचना का क्या अर्थ है !

 मेरे रोम-रोम के वाद्यवृंद से 

सतत नि:सृत होता 

ऊं नमः शिवाय

ऊं नमः शिवाय

ऊं नमः शिवाय

कहता है - 

"मैं हूँ शिव और

तू है शिवप्रिया !"


रश्मि प्रभा

28 जुलाई, 2024

एक पहचान

 बारिश की बूंदों से हो रही है बातें

कहा है उसने आगे ही एक नदी है

जहां मैं खुद को एक पहचान दे रही हूँ,

मिट्टी, किनारे,नाव, मल्लाह, मछली... चांदनी से रिश्ता बना रही हूँ ।

सुनकर चल पड़ी हूँ उस ओर

जहां नदी बारिश की बूंदो संग

मेरा इंतजार कर रही है ...

सोचा है बैठूंगी नाव में,

इस किनारे से उस किनारे तक चलते हुए,

मल्लाह, नदी, धरती,आकाश की 

कुछ सुनूंगी,

कुछ सुनाऊंगी

 सुबह-सुबह पेड़, चिड़िया से तारतम्य बनाते हुए

बारिश की यात्रा बताऊंगी 

पेड़ों की प्यास बुझ जाएगी

चिड़िया चहचहा उठेगी,

यह जानकर

कि, पास ही नदी है

बारिश के पानी से भरी हुई

प्राकृतिक दुल्हन की तरह !


रश्मि प्रभा

26 जुलाई, 2024

खुद के लिए !!!

 बौद्धिक विचारों के लिबास से लिपटे लोग 

अक्सर कहते हैं -

खुद के लिए जियो,

खुद के लिए पहले सोचो"

... खुद के लिए ही सोचना था 

तब प्यार क्यों 

रिश्ते क्यों 

मित्रता क्यों 

इन सबसे ऊपर 'मोह' क्यों !

इन सबसे ऊपर होना 

इतना ही आसान होता 

तो न महाभिनिष्क्रमण का कोई अर्थ मिलता,

न संन्यासी की रचना होती 

और ना ही आवेश में कोई कहता,

"स्वार्थी" !!!

आंतरिक बेचैनी तक नहीं पहुंच सकते 

तो मत पहुंचो,

नाहक परामर्श मत दो ।

मेरा 'खुद' 

मैं हूँ ही नहीं 

और जो हूँ,

वह तुम्हारी सोच,

तुम्हारे तर्क, कुतर्क से 

कोसों दूर है 

और दूर ही रहेगा ।


रश्मि प्रभा

20 जुलाई, 2024

कुड़माई हो गई ?

 काश! उसने मुझसे पूछा होता 

'तेरी कुड़माई हो गई है ?'

मैं कहती,

"नहीं रे बाबा,

तू करेगा क्या कुड़माई ?

तू सूबेदार बनना 

मैं तेरी सूबेदारनी 

फिर सारी उम्र तू ऐसे ही सवाल करना 

ताकि मेरी शोखी को 

धीमी धीमी आंच मिलती रहे !"


काश!

उसने यह पूछा होता,

"तू करेगी मुझसे कुड़माई ?"

और मैं धत् कहकर 

उसके गले लग जाती

उसकी लंबी आयु बन जाती ।


रश्मि प्रभा

17 जुलाई, 2024

संवेदनशील

 पास आकर कुछ बताना अपने आप में 

एक गहरी खामोशी की रुदाली होती है !

बिल्कुल असामयिक मृत्यु जैसी !!

अगर तुम्हारी संवेदना मरी ना हो

तो खामोश ही रहो न ।

जीवन क्या है !

उसे उसी वक्त 

ऐसे वैसे दिखाने की क्या जरूरत है !

जो दर्द के गहरे समंदर में होता है, 

उसके आगे तो यूं भी एक एक सच 

हाहाकार करता गुजरता है !

कुछ नहीं दे सकते 

तब कम से कम इतना विश्वास ही दे दो

कि किनारे तुम खड़े हो

अगर तुम संवेदनशील हो तो !!


रश्मि प्रभा

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...