28 जुलाई, 2024

एक पहचान

 बारिश की बूंदों से हो रही है बातें

कहा है उसने आगे ही एक नदी है

जहां मैं खुद को एक पहचान दे रही हूँ,

मिट्टी, किनारे,नाव, मल्लाह, मछली... चांदनी से रिश्ता बना रही हूँ ।

सुनकर चल पड़ी हूँ उस ओर

जहां नदी बारिश की बूंदो संग

मेरा इंतजार कर रही है ...

सोचा है बैठूंगी नाव में,

इस किनारे से उस किनारे तक चलते हुए,

मल्लाह, नदी, धरती,आकाश की 

कुछ सुनूंगी,

कुछ सुनाऊंगी

 सुबह-सुबह पेड़, चिड़िया से तारतम्य बनाते हुए

बारिश की यात्रा बताऊंगी 

पेड़ों की प्यास बुझ जाएगी

चिड़िया चहचहा उठेगी,

यह जानकर

कि, पास ही नदी है

बारिश के पानी से भरी हुई

प्राकृतिक दुल्हन की तरह !


रश्मि प्रभा

3 टिप्‍पणियां:

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