बौद्धिक विचारों के लिबास से लिपटे लोग
अक्सर कहते हैं -
खुद के लिए जियो,
खुद के लिए पहले सोचो"
... खुद के लिए ही सोचना था
तब प्यार क्यों
रिश्ते क्यों
मित्रता क्यों
इन सबसे ऊपर 'मोह' क्यों !
इन सबसे ऊपर होना
इतना ही आसान होता
तो न महाभिनिष्क्रमण का कोई अर्थ मिलता,
न संन्यासी की रचना होती
और ना ही आवेश में कोई कहता,
"स्वार्थी" !!!
आंतरिक बेचैनी तक नहीं पहुंच सकते
तो मत पहुंचो,
नाहक परामर्श मत दो ।
मेरा 'खुद'
मैं हूँ ही नहीं
और जो हूँ,
वह तुम्हारी सोच,
तुम्हारे तर्क, कुतर्क से
कोसों दूर है
और दूर ही रहेगा ।
रश्मि प्रभा
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना
जवाब देंहटाएंवाह! अद्भुत!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक एवं सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना 👌👌🙏
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