मैं स्त्री थी,
ममता, सहृदयता का स्तम्भ !
अन्नपूर्णा, बेटी,बहन, पत्नी, मां !!
ओ पुरुष,
तुमने इस स्तम्भ को गाली का दर्ज़ा दिया,
और ... महिषासुर बन गए !
और दुनिया में
अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए,
नवरात्रि मनाने लगे ।
अपनी कुदृष्टि को सुकून देने के लिए
कन्या पूजन करने लगे !
सिंह का गरजना,
त्रिशूल का गंतव्य
तुमने स्वयं निश्चित किया ।
स्वयं मां दुर्गा बहुत रोईं,
पर अपनी हेठी में
तुम बस घृणित ठहाके लगाते रहे,
कुबोल बोलते रहे ।
अब मां ने अपने आंसू खुद पोछ लिए हैं,
निर्णय का खड्ग उठा लिया है,
तुम्हारे द्वारा निर्धारित किसी वाहन से
वे अब नहीं आएंगी !
तुम होते कौन हो तय करनेवाले
कि वे कैसे आएंगी
और कैसे जाएंगी
और उनके क्या मायने हैं !
किसी भी लड़की को घेरते हुए
उसे तार तार करते हुए,
उसे मृत्यु देते हुए
क्या तुमने उसके मायनों को समझा ?
राजनीति खेलो
या अपनी विकृति ...
देख तेरे घर में घूमती
नौ छाया को,
यानी अपने पूरे वंश के विनाश का तांडव ।
रश्मि प्रभा
सत्य एवं सटीक
जवाब देंहटाएंकुटिल नराधमों के सर्व विनाश के लिए माँ के इस तांडव की बहुत जरूरत है 🙏
जवाब देंहटाएं"...
जवाब देंहटाएंअपना प्रभुत्व दिखाने के लिए,
नवरात्रि मनाने लगे ।
अपनी कुदृष्टि को सुकून देने के लिए
कन्या पूजन करने लगे !
..."
अद्वितीय एवं भिन्न रचना। यह विषय वाकई गंभीर है। आपने अपने भाव व विचार हमारे साथ साझा किया इसके लिए धन्यवाद। हम पुरूष इसपर अवश्य कार्य करेंगे। यह मेरा आश्वासन नहीं, विश्वास है। सादर प्रणाम।
सत्य सार्थक एवं सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
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