16 अगस्त, 2024

तांडव

 मैं स्त्री थी,

ममता, सहृदयता का स्तम्भ !

अन्नपूर्णा, बेटी,बहन, पत्नी, मां !!

ओ पुरुष,

तुमने इस स्तम्भ को गाली का दर्ज़ा दिया,

और ... महिषासुर बन गए !

और दुनिया में 

अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए,

नवरात्रि मनाने लगे ।

अपनी कुदृष्टि को सुकून देने के लिए 

कन्या पूजन करने लगे !

सिंह का गरजना,

त्रिशूल का गंतव्य 

तुमने स्वयं निश्चित किया ।

स्वयं मां दुर्गा बहुत रोईं,

पर अपनी हेठी में 

तुम बस घृणित ठहाके लगाते रहे,

कुबोल बोलते रहे ।

अब मां ने अपने आंसू खुद पोछ लिए हैं,

निर्णय का खड्ग उठा लिया है,

तुम्हारे द्वारा निर्धारित किसी वाहन से 

वे अब नहीं आएंगी !

तुम होते कौन हो तय करनेवाले 

कि वे कैसे आएंगी 

और कैसे जाएंगी 

और उनके क्या मायने हैं !

किसी भी लड़की को घेरते हुए 

उसे तार तार करते हुए,

उसे मृत्यु देते हुए 

क्या तुमने उसके मायनों को समझा ?

राजनीति खेलो 

या अपनी विकृति ...

देख तेरे घर में घूमती

नौ छाया को,

यानी अपने पूरे वंश के विनाश का तांडव ।


रश्मि प्रभा

5 टिप्‍पणियां:

  1. कुटिल नराधमों के सर्व विनाश के लिए माँ के इस तांडव की बहुत जरूरत है 🙏

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  2. "...
    अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए,
    नवरात्रि मनाने लगे ।
    अपनी कुदृष्टि को सुकून देने के लिए
    कन्या पूजन करने लगे !
    ..."

    अद्वितीय एवं भिन्न रचना। यह विषय वाकई गंभीर है। आपने अपने भाव व विचार हमारे साथ साझा किया इसके लिए धन्यवाद। हम पुरूष इसपर अवश्य कार्य करेंगे। यह मेरा आश्वासन नहीं, विश्वास है। सादर प्रणाम।

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  3. सत्य सार्थक एवं सुन्दर रचना

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