अभिनय और सत्य !!!
शब्दों और व्यवहार का,
एहसास का
बहुत बड़ा फ़र्क होता है !
यदि मन-गोमुख से
गंगा निकलती है
भावना हरिद्वार
दृष्टि बनारस
और वाणी कैलाश है
तो देश के किसी भी कोने से
जो आवाज़ उठेगी,
वह सिर्फ़ और सिर्फ़
अस्वीकार का इंकलाब होगी ...
इंकलाब का अर्थ पता है न बंधु !
उसे लाने के लिए
अन्याय की हवेली की ओर
एक पत्थर ईमान से उछालो
या अनाचार की भीड़ पर
विद्रोह की एक लंबी चीख
अंगद के पांव सी डालो
कि उसकी प्रतिध्वनियां
उसे उठकर जाने न दें ...
कुतुब मीनार की ऊंचाई से
लाल किले की गहराई से चीखो
द्वारका की आरती में
केदारनाथ की छाती में चीखो
अमरनाथ के गह्वर में
वाणगंगा की लहर में चीखो
अस्वीकृति के इस आंदोलन को
हर देहरी का दीप बनाओ
उसे जलाए रखो ...!
छुट्टी लो,
समतल से पहाड़ों तक
सागर के किनारों तक
छुट्टी लेकर जाओ
गेट टुगेदर के लिए नहीं,
शराब की बोतलें खोलने के लिए नहीं,
मौज मस्ती में डोलने के लिए नहीं,
एक आत्मीय गुहार के लिए !
पाक-साफ़ प्रतिकार के लिए !
किसी अमानवीय घटना को
कबतक दंतकथाओं में ढालोगे ?
अनुमानों के हवनकुंड में
कबतक घी डालोगे ?
बस एक बार !
दिल पर हाथ रखो,
ज़मीर को जगाओ
पराए दर्द को सहो...
फिर कहो,
तुम्हारी बेटी होती तो..... ???
सारे सबूत मिटा दिए जाते तो ???
क्षत विक्षत बेटी को
कहानी बनते देखकर
इस तरह मशहूर होने पर
खुश हो जाते ?
ठहाके लगा पाते ?
शरीर के पोस्टमार्टम के बाद
हर तरफ़ से मिलते
चरित्र के पोस्टमार्टम का ब्योरा
संदेह के शब्द सुन पाते ?
ईश्वर ना करे ...!
किसी के भी साथ ऐसा हो !
पर जब हो ही जाए !
ऐसी दर्दनाक मौत
जब मिल ही जाए !!!
देश की इतनी बेबस,
ऐसी बेकस आज़ादी के क्या मायने !
आज़ादी को आज़ादी करो,
इसके लिए लड़ो,
आक्रोश को रगड़ो,
चिंगारियां फूटने दो ...
दुष्यंत की आवाज़ आ रही है...
उसे सुनो,
पर्वत सी पीर पिघलने दो
हिमालय से गंगा निकलने दो
अपनी कोशिशों को
सूरतें बदलने दो
हर गली, सड़क, गांव, नगर में
हवा में लहरा के
लाशों को चलने दो
और मेरे सीने में नहीं तो
उसके सीने में सही ... नहीं !
मेरे, तेरे, इसके, उसके
हर सीने में आग जलने दो !
बहुत ज़रूरत है इसकी,
बहुत ज़्यादा!
आज यही है तुम्हारी
वांछनीय योग्यता !
लिखते जाओ,
सड़क पर आओ
सारे मंदिर, मस्जिद
गिरजा, गुरुद्वारे बंद कर दो
कोरोना काल की तरह
यातायात रोक दो
दुकानों के शटर गिरा दो...
मरना है हर हाल में
तो आत्मा को जी भर
जीकर मरो...जीकर मरो !
रश्मि प्रभा
अति सशक्त लेखनी, इस निंदनीय घटना की जितनी भर्त्सना की जाये कम है
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त. बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
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