14 दिसंबर, 2007

तलाश...





कभी - कभी अचानक एक हलकी-सी खरोच
सारे ज़ख्मों को ताजा कर जाती है ,
फिर उस वक़्त तलाश होती है उस व्यक्ति की -
जो जीवन की आपाधापी से अलग उस मर्म को समझ सके !
...नहीं ,नहीं किसी अपने की तलाश नहीं ,
वे तो क्षणिक होते हैं ,
सब जानकर भी बेतुके प्रश्न करते हैं !

एक वक़्त था - जब असामयिक आँधी मे ,
सुनामी लहरों के बीच ,
मैंने उन्हें आवाज़ दी थी ,...
सुनामी लहरों से बचने के लिए वे प्रायः दूर खड़े रहे .
एक - दो हथेलियाँ बढ़ी ,
पर ....मेरी हिचकियों से उन्हें परेशानी होती थी .
समझौता उन्हें नहीं ,
मुझे करना होता था ,न चाहते हुए भी खिलखिलाकर हँसना पड़ता था ...............

कोई निर्णय आसान नहीं था ,
कुएँ ,खाई ,समतल ज़मीन मे कोई फर्क नज़र नहीं आता था .
पर कुछ मकसद हो जीवन मे ,
तो वे उद्देश्य बन जाते हैं ...
मुझे भी जीवन का उद्देश्य मिला .

जिस दिन अंधी गहरी गुफा से बाहर ,
रोशनी की किरण झलकी -
विश्वास सुगबुगाया ,
'ज़िन्दगी मे बदलाव आता है ',
और उमीदों को नई ज़मीन मिली .
' कल ' दरवाज़े पर ' आज ' का दस्तक देने लगा .......
अतीत के दुह्स्वप्नो को भुला मैंने रंगोली सजाना शुरू किया .

पर उटपटांग प्रश्नों की खरोच से अतीत के ज़ख्म हरे हो जाते हैं
प्रश्नकर्ता अतीत का भयावह हिस्सा नज़र आता है ,
फिर बेचैन - सी मैं उस व्यक्ति को तलाशती हूँ ,
जो मेरे एहसासों को जी सके ............

9 टिप्‍पणियां:

  1. कभी - कभी अचानक एक हलकी-सी खरोच
    सारे ज़ख्मों को ताजा कर जाती है ,
    फिर उस वक़्त तलाश होती है उस व्यक्ति की -
    जो जीवन की आपाधापी से अलग उस मर्म को समझ सके !

    कहाँ यह बात कोई समझ पाता है यही एक तलाश शायद ज़िंदगी को अंत तक ले जाती है और कब खामोशी से साँस थम जाती है पता ही नही चलता .अच्छा लिखा है आपने इस रचना को

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  2. आपके एहसास पहुचने लगे है ..तलाश ख़त्म हुई , सुनामी आया था , गुजर गया ... अब है कल-कल बहता , अपनी लहरों से स्वागत करता नया विश्वास ... Ilu ...!

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  3. ऊट -पतंग प्रश्न वाकई बहुत दुखी करते हैं...खासतौर से जब आप पिछली सब बातों से पीछा छुडाने को दृढ संकल्प हो...लाजवाब रचना...!

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  4. जो मर्म को छू जाए पाठक की आँख में आंसू झिलमिलाने लगे दर्द साधारणीकरण के माध्यम से दिल से दिल तक पहुँच जाए तों वह रंगोली तों अनुपम होगी ना !!!

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  5. फिर बेचैन - सी मैं उस व्यक्ति को तलाशती हूँ ,
    जो मेरे एहसासों को जी सके ............
    नि:शब्‍द करते भावों के साथ ..बहुत खूब कहा है ।

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  6. पर यह तलाश निरंतर बनी रहती है ... मन की कश्मकश को कहती अच्छी रचना

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  7. फिर बेचैन - सी मैं उस व्यक्ति को तलाशती हूँ ,
    जो मेरे एहसासों को जी सके ............

    kya mila koi?

    kahan milta hai koi itni asani se hamare ehsason ko jo ji sake....

    aur jab milta hai, tab tak aadat-si hoti hai khud mein hi sab samet lene ki

    bahut sunder bhaavon se saji kriti

    abhar

    Naaz

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  8. फिर बेचैन - सी मैं उस व्यक्ति को तलाशती हूँ ,
    जो मेरे एहसासों को जी सके ............आप कितनी खूबसूरती से मन के भावो को, उलझनों को शब्दों में पिरो देती है.... जिसे पढ़ कर फिर पढने और कहने के लिए कुछ बचता ही नही है.... आपका आभार.....

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