19 फ़रवरी, 2008

कल का सूरज......


शान्त नदी,
घनघोर अँधेरा,
एक पतवार और खामोशी-
यात्रा बड़ी लम्बी थी!
ईश्वर की करुणा
एक-एक करके पतवारों की संख्या बढ़ी ,
कल-कल का स्वर गूंजा
खामोशी टूटी
अँधेरा छंटने लगा
यात्रा रोचक बनी
प्यार की ताकत ने
किनारा दिखाया
उगते सूर्य को अर्घ्य चढाया .................

2 टिप्‍पणियां:

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...