12 मार्च, 2008

किससे कहें!!!


आवाजें कुछ अजीब - सी आती हैं,
सुनने की बजाय,
पकड़ने की कोशिश करती हूँ........
जाने क्यूँ!
शीशे की किरचों पर पाँव पड़ जाते हैं
और खून रिसते हैं....पाँव से नहीं
- दिल से!
दिल की बात तो कोई सुनता नहीं
तो-क्या कहें?
किससे कहें!!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ बातें सिर्फ़ हम ख़ुद से ही कह पाते हैं .अच्छे भाव है इन पंक्तियों के रश्मि जी !!

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  2. आप की कविताएँ बहुत सुंदर लगीं. शुभकामनाएँ.
    सुनील

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  3. मौन रख लें..समझने वाले मौन की भाषा भी समझ लेंगे.

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  4. kuch kehna chahte hain....
    par shabd jubaan main hi rah jaate hain...
    aksar dhundhte hain saaye apno ke..
    par andhere main to wo bhi nazar nahin aate hain...

    Di bilkool sahi kahaa aapne....to kya kahen?....kise kahen?

    ehsaas!

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  5. प्रशंसा कलम को जीवन दे जाती है
    मौन का सुझाव उचित लगा
    धन्यवाद

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  6. aawaz ko pakadna achha laga,antarang man shayad shayad dikh bhi jaye,bahut sundar.

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  7. aapne to bina kuchh kahe hee itnaa kuchh keh daalaa ki aur kuchh kehne kee ab gunjaish hee kahan hai.

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...