13 मार्च, 2008

मॉल लाइफ ..........(यह कोई कविता नहीं है)


मॉल , यानी.....शोखियों में घोला जाये,फूलों का शबाब,
उसमें फिर मिलाई जाये-थोड़ी सी शराब..........
दुनिया कहाँ- से- कहाँ आ गई!मॉल जाने का नशा -सा हो चला है,
लेबल लगे कपड़े, एक ही प्रिंट के,डब्बा बंद खाना,कटी सब्जियां ,आधी सिंकी रोटी...
किसी भी दिन जाओ,भीड़-ही-भीड़!
फर्श इतना चिकना की बेबी स्टेप्स लेने को बाध्य ....अरे कुछ कुर्सियाँ ही रख दो आराम के लिए!
..........
आम आदमी कई कपड़ों को घूरता है,'इसे कौन पहनेगा?'-जैसे भाव लिए!
पिज़्ज़ा,बर्गर,फ्रेंच फ्राईज़ का स्टाइल है...बर्गर क्या है?डबल रोटी,बीच में हरी पत्ती...मछली के चोखे की टिकिया...फ्रेंच फ्राईज़ उबले आलू का कुरकुरा भुजिया...मॉल स्टाइल ,नाम 'मैकडी'...
नन्हें कपड़े में बच्चे स्टाइल में दौड़ते हैं,मैकडोनाल्ड्स में बैठ कर कुछ इस तरह गोल चेहरा बना कर देखते हैं कि अपने पिछडेपन का एहसास होता है...
और लडकियां!नाभिदर्शना जींस में,हाफ टॉप के साथ "बला" ही नज़र आती हैं...
लड़कों से यूँ चिपक कर चलती हैं कि हवा बेचारी ही कहती है "ज़रा मुझे आने दे"...
अंग्रेजी की किताब और मोबाइल पर अंग्रेजी धुन या फिर मॉल की सीढियों पर कान में तार लगाये आईपॉड से गाने सुनना ...भाई मुझ गंवार को तो एक ही गीत याद आता है -
"जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं?
कहाँ हैं?कहाँ हैं?कहाँ हैं?"

6 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक भावनाएँ, खूबसुरत अभिव्यक्ति। बधाई।

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  2. जी हाँ सही कहा आज कल वक्त बहुत तेजी से बदल रहा है अच्छा उकेरा आपने शब्दों के माध्यम से इस दर्द को !!

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  3. abhivyakti vyangyatmak wa shandaar.........par kavita jaisee rup nahi le payee hai sayad..........

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  4. YE KAVITA NAHI TAB HI THEEK HAI..
    YE AAPKA ANUBHAV HAI..
    KAVITA REHNE PAR KAHI KUCH BHOONYEN UTH BHI SAKTI THI QKI SHAYAD JAHAAN SE AAP DKH RAHI WAHA SE KOI AUR NA DEKH RAHA HO..
    SABKA APNA NAZARIYA HAI AUR AAPKA NAZARIYA KAABILE TAARIF HAI..

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  5. भाई मुझ गंवार को तो एक ही गीत याद आता है -
    "जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं?
    कहाँ हैं?कहाँ हैं?कहाँ हैं?"
    साहिर की इस नज्म के माध्यम से आज की सामाजिक विद्रूपता को बखूबी उकेरा है आपने ....

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...