28 मार्च, 2008

भैंस.......

कई बार, कविता सुनाते वक्त
बस होठ चलते हैं
और-मस्तिष्क में मुहावरे
'भैंस के आगे बीन बजाओ
भैंस खड़ी पगुराए'...................................................
फिर कविता ख़त्म!
कविता को छुपाकर कई बार पढ़ती हूँ,
जानने की कोशिशें चलती हैं-
क्या था,
जो समझदारों को
भैंस बना गई!!!!!!!!!!!!!!!!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. हंसी भी आ रही है और सच भी लग रहा है। कभी-२ होता है ऐसा क्या?फिर भी हर तरह ही इस बार भी छोटी होते हुए भीउन्दा कविता।।

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  2. sahi kaha di...wo kehte hai na
    "kavi ki kalpana"....sajaaye nayee nayee alpana!


    achha vyang hai...
    ....EHSAAS!

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  3. रश्मि जी आपकी कविता हँसाने में तो सफल हो जाती है .........

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  4. bahut achha laga ye rang bhee ahnsee behe bane erahe aap ke man kee ye dua karata hoon

    Anil

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  5. :););)bahut mazedar bhi aur satya bhi,kya baat hai wah.

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  6. rashmi ji aap ko hamari link chahiye thi,ye rahi

    http://mehhekk.wordpress.com/

    hum jaha comments karte hai aapki post par waha hamari link hoti hai,aap bas hamare naam par click karein aap hamare blog tak ja sati hai,aap jaisi mahir kaviyatri hamari nanhi si kavita padhkar hame jo hausla deti hai,uske liye bahut bahut shukriya ji,sadar mehek.

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  7. भावनाओं के मंदिर में आकर सचमुच मंदिर का अहसास हुआ...हार्दिक बधाई.. अपने दिल के मंदिर को आरती, फूल, नेवैद्य, धूप, दीप देने के लिए...खुशबू से दिल नहा गया...

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...