ओ रूपसी,
आज तुमने अपनी पर्ण-कुटी के द्वार नहीं खोले,
बस भीतर ही खिलखिलाती रही,
चिडियों का समूह दानों की प्रतीक्षा में है,
जरा खोलो तो द्वार,
मैं भी देखूं तुम्हारा आरक्त चेहरा,
बिखरे सघन बाल,
फ़ैल गए टीकेवाला चेहरा,
जानूँ तो सही-
किसे ये अधिकार तुमने दे दिया है...........
आज तुमने अपनी पर्ण-कुटी के द्वार नहीं खोले,
बस भीतर ही खिलखिलाती रही,
चिडियों का समूह दानों की प्रतीक्षा में है,
जरा खोलो तो द्वार,
मैं भी देखूं तुम्हारा आरक्त चेहरा,
बिखरे सघन बाल,
फ़ैल गए टीकेवाला चेहरा,
जानूँ तो सही-
किसे ये अधिकार तुमने दे दिया है...........