22 मई, 2008

अधिकार........


ओ रूपसी,
आज तुमने अपनी पर्ण-कुटी के द्वार नहीं खोले,
बस भीतर ही खिलखिलाती रही,
चिडियों का समूह दानों की प्रतीक्षा में है,
जरा खोलो तो द्वार,
मैं भी देखूं तुम्हारा आरक्त चेहरा,
बिखरे सघन बाल,
फ़ैल गए टीकेवाला चेहरा,
जानूँ तो सही-
किसे ये अधिकार तुमने दे दिया है...........

13 टिप्‍पणियां:

  1. अधिकार ...........
    वाह बहुत ही शानदार है ..........रश्मि जी ऐसी ही रचनाएँ पड़कर आनंद आ जाता है ........ बहुत गहराई ली हुई रचना है ............शुभकामनाएं......

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  2. सुन्दर भावात्मक अभिव्यक्ति. लिखते रहें

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  3. मैं कहाँ अब जिस्म हूं एहेसास ही एहेसास हूं मैं उजाले की तरहाँ तेरे दीये के पास हूं

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  4. मन के भीतर पूरा युग बदल दिया आप ने बहुत बेहतरीन लिखा है

    अनिल मासूमशायर

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  5. एकदम नयी अनुभूति है..बहुत ही नजाकत है इस रचना में ...

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  6. Teri har ek rachna man main...
    prashn naye utpann hai karti...
    nav bhaavon se, har ek pankti...
    Swapnon ko, sampann hi karti...

    shabd har ek, ek bhav samete..
    bhav har ek, sadbhav samete...
    jo na dikha, hain use dikhate...
    kahe bina bhi, sab samjhate...

    hamko lagte sab samjhate...
    kuchh bhi lekin nahn batate...
    yadon ke mausam main aakar...
    roz naye ahsaas jagaate....

    likhti rahen....aur aise hi bhavon se sarabor karti rahen....ham sabko..

    Deepak Shukla

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  7. आदरणीय मैडमजी ,
    आपके ब्लोंग पर आकर हर बार एक नयी रौशनी मिलती है !!आपकी अन्य रचनाओ की तरह इस रचना में भी एक अलग सी अनुभूति है .
    सादर
    अमिताभ

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  8. aapka andaaz bhi niraala hai kitni sunderta se kah gayi hai aap ...........ye adhikaar tumne kise de diyaa hai.........bhut khoob......

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  9. मैं भी देखूं तुम्हारा आरक्त चेहरा,
    बिखरे सघन बाल,
    फ़ैल गए टीकेवाला चेहरा,
    जानूँ तो सही-
    किसे ये अधिकार तुमने दे दिया है

    bahut hi umda...

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  10. most respected madamji,
    plz visit my blog
    www.dilseamit.blogspot.com

    sadar !!
    amitabh

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