26 नवंबर, 2009

मोक्ष


वो तुम्हारे अपने नहीं थे
जिन्हें साथ लेकर
तुमने सपने सजाये
सूरज मिलते
सब अपनी रौशनी के आगे
एक रेखा खींच ही देते हैं !
शिकायत का क्या मूल्य
या इन उदासियों का ?
'आह' कौन सुनता है ?
वक्त ही नहीं !
गर्व करो-
तुम आज अकेले हो !
साथ है वह सत्य
जिसे कटु मान
तुमने कभी देखा ही नहीं !
भीड़, कोलाहल
आंखों औ कानों का धोखा है
सत्य है 'कुरुक्षेत्र'
जिससे मुक्ति के लिए
मिली प्रकृति.......
धरती,आकाश,पेड़,पौधे
ऊँचे पहाड़,हवाएँ,बूंदें...
इनसे बातें करो
हर समाधान है इसमें !
मृत्यु के बाद-
धरती की बाहें
अग्नि की पवित्र लपटें
पेड़ की शाखाएं
अपने अंक में समेट लेती हैं
रिश्तों से आगे
यही विराम है !
उसके आगे दर्द का सत्य
कटु नहीं कुरूप है
तभी तो
हम उसे जानते नहीं
जानना भी नहीं चाहते.....
उस कुरूपता से
जोड़ा है प्रभु ने मोक्ष द्वार !
पाना है उसे
तो संवारो किसी को...
अपनी निश्छल भावनाएं दो
अंतर्द्वंद से बाहर निकलो
जीते जी अपने संचित पुण्यों में
किसी को शामिल करो !

34 टिप्‍पणियां:

  1. 'आह' कौन सुनता है ?
    वक्त ही नहीं !
    गर्व करो-
    तुम आज अकेले हो !

    -सुन्दर भावपूर्ण यथार्थ की अभिव्यक्ति!!

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  2. घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यु कर ले,
    किसी रोते हुए बच्चे को हसाया जाए....

    मोक्ष सही मायने में यही है....फिर वही बातो बातो में रिश्तो के मायने समझा दिए...ILu...!

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  3. पाना है मोक्ष तो संवारो किसी को
    --उच्च विचार।

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  4. 'आह' सुनने के लिये आज किसी के पास वक्त ही नहीं इसलिए बाँट सको तो कुछ मुस्कुराहटें बाँटो... मोक्ष का यही द्वार है शायद !!!

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  5. कौन किसकी सुनता है ...
    सभी तो जाने कहाँ भागे जा रहे हैं ...
    आपकी कविता में विन्यस्त सोच सबको सोचने
    पर विवश करता है ...
    आभार ...

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  6. रश्मि दीदी चरण स्पर्श

    बहुत दिंनो बाद आपकी कोई कविता पढने को मिली , लाजवाब व बेहद उम्दा रचना ।

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  7. बड़ी दार्शनिक मनस्थिति हो जाती है इसे पढ कर..
    और बड़ी सामयिक भी..

    जीते जी अपने संचित पुण्यों में
    किसी को शामिल करो !

    साझे के पुण्य ही वास्तविक पुण्य होते है..धर्म-ग्रंथ गवाह हैं...

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  8. मोक्षभाव से भरी सुन्दर रचना ।

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  9. मोक्ष पाने का सही रास्ता तो आप ने अपनी कविता मै ही बता दिया. बहुत सुंदर
    धन्यवाद

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  10. अपनी निश्छल भावनाएं दो
    अंतर्द्वंद से बाहर निकलो
    जीते जी अपने संचित पुण्यों में
    किसी को शामिल करो !

    कटु सत्य को इस तरह भी तो सहन किया जा सकता है ...
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  11. bahut sunder rachana .insaan thoda bhee doordarshee ho jae to sach hee usaka jeevan to kam se kam sambhal hee jae .meree agalee kavita par pratikriya avashy deejeeyega. ye hee soch ka pahaloo hai per aaj sudharne kee bat hai. mai to kayal hoo aapake soch kee .

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  12. ... माया-मोह के जंजाल से जो मुक्ति पा गया समझ लो वो ... !!!!!!

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  13. मोक्ष का द्वार इसी तरह मिलेगा ,सही तरीका सुझाया है आपने

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  14. moksh ............ek bahut hi gahan vishay aur utni hi gahan rachna.

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  15. aapki yah kavita bhi anya kavitaon ki tarah sachchaai ke kafi kareeb hai.

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  16. moksh ke bade achhe dwar dikhaaye aapne...apni nishchhal bhavnaayen do..andardwand se bahar nikaalo...uttam vichar aur badhiya abhivyakti

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  17. rashmi ji,

    aapki ye rachna moksh ke marg ko bakhoobi bata rahi hai....sundar abhivyakti hai....badhai

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  18. आह' कौन सुनता है ?
    लाजवाब व बेहद उम्दा......

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  19. BAHUT HI SARTHAK ... SAATVIK LIKHA HAI ... MRITU KE DWAAR SE SAB KO AGELE HI JAANA HAI BAS AMNE KARMON KO SAATH LE JAANE KI IZAAZAT HAI ....
    LAJAWAAB ABHIVYAKTI HAI ...

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  20. sabse pahle maafi chahunga ki idhar samayabhav ke kaaran aapke blog par kaafi dino se nahi aa paya...

    har baar ki hi tarah is baar bhi bahut achhi kavita hai... jyada kahna suraj ko diye dikhane jaisa hai..

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  21. वाह......मोक्ष प्राप्त करने की सारी जुगतें बता दी आपने .... पर कहाँ .....मनुष्य जानते हुए इस रास्ते पर चलना ही नहीं चाहता ....!!

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  22. संवेदनाओं,अध्यात्म और दर्शन का अनोखा संगम है इस रचना में----।
    शुभकामनायें।
    पूनम

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  23. सूरज मिलते
    सब अपनी रौशनी के आगे
    एक रेखा खींच ही देते हैं !

    --------
    adbhut!
    रिश्तों से आगे
    यही विराम है !
    -kitna khubsurat likhti hain aap!

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  24. दार्शनिक भावनाओं की लाजवाब अभिव्यक्ति।बहुत अच्छी लगी यह कविता।
    हेमन्त कुमार

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  25. मृत्यु के बाद-
    धरती की बाहें
    अग्नि की पवित्र लपटें
    पेड़ की शाखाएं
    अपने अंक में समेट लेती हैं
    रिश्तों से आगे
    यही विराम है !
    वाह बहुत खूब! अत्यन्त सुंदर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!

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  26. मोक्ष एक खोज है
    ,
    कि‍ मोक्ष कि‍से
    ?
    कि‍ससे चाहि‍ये ??

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  27. moksh ki shj sundar paribhsha .
    ramkrshn parmhans ne kha tha sharda
    maa ko -tumhare putr nhi hai to kya ?apna jeevan aisa bnao ki sare sansar ki maa khlao .
    aur sharda maa ne apna jeevan tapakar moksh paya .

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  28. सुंदर विचारों से ओतप्रोत बहुत बढ़िया कविता है।शुभकामनायें।

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