01 दिसंबर, 2009

बस मैं हूँ !


महत्वाकांक्षाओं के पंख लिए
मैं ही धरती बनी
बनी आकाश
हुई क्षितिज
झरने का पानी
गंगा का उदगम
सितारों की टिमटिमाती कहानी
चाँद सा चेहरा
पर्वतों की अडिगता
नन्ही लडकी के घेरेवाली फ्रॉक - सी घाटी
चिड़ियों की चहचहाहट
सूर्योदय का गान
तितलियों के बिखरे रंग
उमड़ती घटायें
प्रातः राग
संध्या की लाली
शरद की चांदनी
टूटता सितारा
तुम्हारी इच्छाओं की पूर्णता
वसुंधरा की हरीतिमा
किसानों का सुख
मोटी-मोटी रोटियाँ
हरी मिर्च और प्याज
.......
सृष्टि का हर रूप लिया
हर सांचे में ढली
महत्वाकांक्षाओं की उड़ान में
कलम बनी
भावनाओं की स्याही से पूर्ण
सुकून का सबब बनी
.....
मैं यहाँ भी हूँ,
वहाँ भी हूँ
जिधर देखो
मैं हूँ
बस मैं हूँ !

36 टिप्‍पणियां:

  1. मम्मी जी... बहुत अच्छी लगी यह कविता... आखिरी पंक्तियों ने मन मोह लिया.....

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  2. बेहद उम्दा रचना , और कुछ ज्यादा कहने को है नहीं ।

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  3. bahut shaandar rachna aapke blog par to teen baar aakar laut gayi tippani box khulne ka naam hi nahi le raha tha ,

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  4. wow Rashmeejee ati sunder.

    froke ke gher see ghatee.............
    kalpana kee udan hee aisee upamae doond latee hai.
    aapakee ek ek rachana ko (pichalee) padana hai ab mera aashay .

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  5. वाकई मनुष्य का व्यक्तित्व इतना विस्तार लिये होता है कि देखना चाहे तो उसी का प्रतिरूप दिखेगा.
    सुन्दर कविता

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  6. ज़िन्दगी की सच्चाई को और हर रोज़ के कार्य को आपने इतनी खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है की आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है! आपकी लेखनी को सलाम! आपकी ये रचना मुझे बेहद पसंद आया!

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  7. मुझे लगा था कि मैं इस बेहतरीन रचना पर पहले ही कमेंट कर गया था.

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  8. मैं ही धरती ...मैं ही आकाश ....
    सच ...आप यहाँ भी है ...वहां भी ....!!

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  9. यह कविता सिर्फ सरोवर-नदी-सागर, फूल-पत्ते-वृक्ष आसमान की चादर पर टंके चांद-सूरज-तारे का लुभावन संसार ही नहीं, वरन जीवन की हमारी बहुत सी जानी पहचानी, अति साधारण चीजों का संसार भी है। यह कविता उदात्ता को ही नहीं साधारण को भी ग्रहण करती दिखती है।

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  10. एक साथ बहुत सारे भावनावों को व्यक्त कर दिया

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  11. आपकी कविता पढ़कर दिल खुश हो जाता है
    लगता है जैसे दिमाग को खुराक और शीतलता दोनों एक साथ मिल गयीं हों

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  12. बस मैं हूँ... अद्भुतास... सच कहा है आपने... बिलकुल उम्दा सच

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  13. हर बार लगता है , 'ये' कविता है कोई
    नही ,ये तो मैं हूँ हर जगह बस मैं हूँ
    मेरा वर्णन ,मेरी बात ,मेरा ज़िक्र ...हर कहीं
    इसकी ख़ूबसूरती भी शायद इसीलिए है कि
    हर जगह व्यक्ति स्वयं को पाता है
    अपना अक्स देखती हूँ हर जगह
    नदी,आकाश,क्षितिज,सितारे, हर कहीं
    फ़्रोक के घेर वाली सी घाटी...
    हाँ, वो नन्ही 'इंदु'कीफ़्रोक का ही घेर है
    सबसे ज्यादा हम खुद से ही प्यार करते है न
    जब हम कविता बन जाए या जिसमे झिलमिलाने लगे
    उस रचना के लिए क्या कहना चाहिए,मुझे नही मालूम
    की वो क्या है और कैसी है ,बस महसूस कर सकती हूँ

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  14. rashmi ji,
    bahut saargarbhit rachna, yahi main to hai jo samast jag mein vyapt hai.
    meri ek rachna''main'' mere blog mein zarur padhein, yun to kafi purani rachna hai par main ka aur bhi vistaar hai.
    isi mai mein ishwar hai aur ishwar sarwatrr, to fir sarwatrr bhi hum hin hue na...shubhkamnayen.

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  15. प्यार के सागर हो, ज्ञान के मंदिर हो,
    आँखों में बसते हो, होठो पे हस्ते हो,
    हर पल् जताते हो, तेरा मैं...तेरा मैं...तेरा मैं..!

    दुनिया में आये हो, रौशनी लाये हो,
    सबके दुलारे हो, हर दिल पे छाए हो,
    हर पल् जताते हो, तेरा मैं...तेरा मैं...तेरा मैं..!

    मन् के चरागों में तुम झिलमिलाते हो,
    भूली सी यादो को रोशन कर जाते हो,
    याद दिलाते हो, तेरा मैं...तेरा मैं...तेरा मैं..!

    तपती दोपहरों में राहत बन जाते हो,
    सबके दिलो की चाहत बन जाते हो,
    हस कर कह जाते हो, तेरा मैं...तेरा मैं...तेरा मैं..!

    Aur kya Kahe ? yahi ho tum...ILu..!

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  16. बहुत अच्छी रचना.....पूरे आत्मविश्वास से भरी हुई

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  17. " अहम् ब्रह्मास्मि " को अतिसुन्दर काव्य रूप में निर्झरनी सा आपने बहा दिया...

    अतिसुन्दर कविता...वाह !!!

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  18. वाह जिधर देखो मैं ही मैं हूँ......अहम् ब्रह्मंस्मी .....बहुत सुंदर दी!

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  19. jisne 'main' ko jaan liya usne sab paa liya........bahut hi sundar bhavo se bhari rachna.

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  20. मुझे भी बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना.
    धन्यवाद

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  21. जिधर देखो उधर मैं हूँ...
    हाँ,
    मुझमें ही भगवान है।
    --अच्छी रचना।

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  22. कवि का उद्‍घोष और वो भी इतने मोहक अंदाज़ में कि क्या कहने...!

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  23. आपकी रचनाओं का गगन बहुत ही विशाल होता है ........... और आपका लेखन बहुत उन्मुक्त ........ अनुपम रचना है .........

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  24. srishti ka har roop bani.....bahut sundar abhivyakti hai....saargarbhit aur gahre bhavon se saji hui rachna....badhai

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  25. ... आसमान मे चमकते एक और तारे (कविता) के दर्शन का सुख प्राप्त हुआ, बहुत-बहुत बधाईंया !!!

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  26. मेरे ख्‍याल से
    , ईश्‍वर की पोशाक

    नन्‍हीं लड़की की घेरे वाली फ्राक
    सी ही होगी।

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  27. वाह! रश्मि प्रभा जी,

    "मैं यहाँ भी हूँ,
    वहां भी हूँ "

    और अब आप मेरे ब्लॉग पर भी हैं :)

    -पीयूष
    www.NaiNaveliMadhushala.com

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  28. haan ,bas main hun!

    aap ne apni kavita mein bahut hi khubsurati se srishti ke har rang mein is main ko dikha diya hai.

    yah khud ke hone ka khubsurat ahsaas hi to hai!
    adbhut kavita.

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  29. प्रकृति और मानवीय भावनाओं का सुन्दर कोलाज्।
    पूनम

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  30. सृष्टि का हर रूप लिया
    हर सांचे में ढली
    महत्वाकांक्षाओं की उड़ान में
    कलम बनी--------

    बेहद संवेदनशील पंक्तियां---
    हेमन्त कुमार

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  31. mausi ji bahut dino se aa nahi paaya...aur aaya to wahi sukun

    bahut achchha likha hai aapne

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  32. shristi ka har roop liya
    har saanche mein dhali !

    rashmi ji kavita apne shikhar par inhi panktiyon mein hai.... ye stree ka traditional roop hai... aur issi kavita mein stree 21wi sadi ki bhi hai jab kehti hai ki... bas mein hoon....

    eak adbhud kavita !

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...