08 जनवरी, 2010

प्रत्यंचा




मन की धाराएँ
तटों से टकराकर
जब गुमसुम सी लौटती हैं
तो दिशा बदल
क्षितिज के विस्तार में
बढ़ने लगती हैं
और धरती से आकाश तक
अपनी प्रत्यंचा खींच देती हैं

46 टिप्‍पणियां:

  1. aap kam panktiyon mein koi bhi baat vistaarpoorvak kah jati hain.

    ye bahut achchha lagta hai

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  2. vicharon ke teer chubhte hein
    magar lahoon nahi nikalta
    apni aankh ke paniyon ko dhoondhne lagti hoon
    ek boond ...bas ek boond us namkeen pani ki nikal jaye
    to mann ki dhara par bhi kisi pushp ke pallawait hone ki sambhavna jage....!

    Rashmi di...... aapki rachnayein behad behad prerit kar jaati hein... aur kuchh na kuchh likh hi jaati hoon....! khush naseeb hun jo aapka saath uplabdh ho paya...!

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  3. मन की धाराएं.....क्षितिज का विस्तार और धरती से आकाश तक प्रत्यंचा

    बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति......बधाई

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  4. यही कहेंगे की - "कम शब्दों में गहरी बात "...ILu..!

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  5. Ye pratyancha nature ki ho ya fir man ki....zaroori hai jeene ke liye....control ke liye

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  6. Ye pratyancha nature ki ho ya fir man ki....zaroori hai jeene ke liye....control ke liye

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  7. मन और मन में बनते-बिगड़ते भावों का सुंदर चित्रण..धन्यवाद ..रचना अच्छी लगी..

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  8. bahut sundrta se phir bhav khinche hai yaha

    hamesha ki tarah bahut acha laga padna

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  9. इस रचना मे शब्दों का समावेश व अभिव्यक्ति प्रभावशाली है किंतु भाव कल्पना से ओतप्रोत जान पडते हैं, .. धाराएं कौन से तटों से टकराकर विस्तार रूप ले रहीं हैं और कहां प्रत्यंचा खींच रहीं हैं .. !!!!
    टिप्पणीकारों द्वारा भी लेखक की तारीफ़ में खूब वाह-वाही दर्ज की है जो अपनी उपस्थिति दर्ज कराने ... !!!!
    लेखक की कल्पनाशीलता बेहद प्रभावशाली है जो निश्चिततौर पर बधाई के योग्य है !!!!

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  10. धाराएँ दिशा बदलकर प्रत्यंचा चढ़ा लेती हैं ...क्या खूब कहा ...
    आप तो दिनोदिन मेरी आदर्श बंटी जा रही है ...प्रणाम ..:)

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  11. Pradam di,
    Hamesa ki tarah gagar me sagar bhari di hai aapne...badhai swikare

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  12. गुमसुम से मान की दौड़ कहाँ जा कर रुकेगी कोई नही जानता .........
    मान के एहसास को गहरे से बयान किया है आपने ........

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  13. Pranam,
    badhi mriduta se vicharo ka samavesh kiya hai apne.
    ap ki profile bahut hi achhchhi hai

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  14. Didi, bahut manmohak kavita kahi hai. Aapki kavitayein mere liye kisi sapne ke samaan hoti hai. bahut khoobsurat kavita aur baat kehne ka tareeka to kya kahun...waah!!

    --Gaurav

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  15. आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!

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  16. क्षितिज के विस्तार में जाने का संकेत!
    मन की उथल पुथल को दिशा दे रही है....आप की यह कविता.

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  17. हमेशा की तरह..गागर में सागर..

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  18. ये प्रत्यंचा बहुत खूब है पर इनपे चाप नहीं चढ़ता !!!

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  19. और यह खिची हुई प्रत्यंचा चित्र में भी दिख रही है.
    बहुत खूबसूरत

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  20. रश्मि जी कम शब्दों मे इतनी बडी बात कह दी। बहुत बहुत बधाई। इस प्रत्यंचा को खींचे रखें तभी तो हमे इतनी सुन्दर रचनायें पढने को मिलेंगी। शुभकामनायें

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  21. शब्दों के इंतज़ार में है यह मन की अपने भावो को कैसे आप से कहे ....
    हसीन है आप के शब्दों का संसार ...

    अमित

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  22. रश्मि जी,बहुत दिनों से ऐसी ही एक कविता की आशा में था जो जीवन का पूरा विस्तार लिए आगे बढती हो. इन्द्रधनुषी बिम्बों के सहारे आपके भावों ने जो रूप धरा हैं वह अपने- आप ही सब कुछ कह जाता है.

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  23. सीमित से असीमित की आपकी यात्रा ने बहुत प्रभवित किया है.

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  24. WAAAAHHH !!!! KYA BAAT KAHI.....

    ITNE KAM SHABDON ME AAPNE POORA BIMB SAKAAR KAR DIYA...CHITRA KI TO KOI AAWASHYKTA HI NA BACHI...

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  25. jee ekdam yaho hota hai..gumsum si lautti bhi hain aur pratyancha bhi banati hain...saaare prayog karti hain..saare..

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  26. थोड़े से शब्दों में भावों का विस्तार भी क्षितिज के विस्तार से कम नहीं.
    सुन्दर अभिव्यक्ति.
    महावीर शर्मा

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  27. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति.....

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  28. मन और मन में बनते-बिगड़ते भावों का सुंदर चित्रण..धन्यवाद ..रचना अच्छी लगी..

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  29. आपका भी जवाब नहीं...!शब्दों और भावनाओं की सुन्दर अभिव्क्ति..

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  30. मन और मन में बनते-बिगड़ते भावों का सुंदर चित्रण..धन्यवाद ..रचना अच्छी लगी..

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