अरसा............जाने कितना अरसा हुआ
कोई चिठ्ठी लेकर डाकिया नहीं आया
लेटर बौक्स में पड़े रहे-
बिजली बिल, मोबाइल बिल
या कुछ प्रचार पत्र......
जानती हूँ,
सबकी अपनी दुनिया है
अपनी खुशियाँ, अपने दायरे
अपने गिने-चुने सम्बन्ध-
तो फिर ये अकेलापन क्यूँ?
शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है
मैंने महसूस किया है कि तुम देख रहे हो मुझे अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...
बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंअपने हाथ से लिखी हुई चिठियो में अपने ह्रदय कि बात होती थी जो सबके दिल के पास होती थी बड़ा लंबा सफरतय करके
जवाब देंहटाएंचिठ्ठी हमारे पास होती थी जिसमे अपनों कि खुशबू होती थी जो हां सबको जोड़े रखती थी |आज इतने संवाद होने पर भी सच हम कितने अकेले है |आपकी इस छोटी सी अभिव्यक्ति ने बहूत कुछ बयां कर दिया |
आभार
क्यों डाकिये और खतों की याद दिलाती हैं ...
जवाब देंहटाएंक्यों जख्मों पर नमक छिड़कती हैं ...
कौन लिखता है आजकल ख़त ....!!
अकेलापन चुनाव होता है किसी ऐसे का, जिसके सामने संभावनाओं की बहुतायत हो। बहुत अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंहां जी ये एकाकीपन आज के जीवन का सबसे बडा सच है , और आपने उसे बखूबी कहा
जवाब देंहटाएंअब तो ई-मेल से ही काम चल जाता है।
जवाब देंहटाएंkisi ke apne hone ka ahsaas kara jate hain aise khat jo aate hain naam hamare magar aaj uske liye sabhi taraste hain..........bahut hi umda likha.
जवाब देंहटाएंwow kya baat hai.....ek nostalgic feel diya aapne to......ab chittiyan nahi aati....fir bhi doori hai rishto mein......is mobile ne nazdikiyon ke naam par thag liya hamko :-)
जवाब देंहटाएंवो दिन हवा हुए जब चिट्ठी आती थीं...अब तो इ मेल हैं या फ़ोन .
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति ....बस अकेलेपन में खुद से ही बात कर लेते हैं
जब इन्सान दूसरो के बारे मे सोचना छोड़ देता है तो दायरे सिमट ही जाते हैं.....बहुत गहरा एह्सास कराती रचना है.......बधाई।
जवाब देंहटाएंचिट्ठी ना कोई सन्देश ...
जवाब देंहटाएंआज दुनिया आभासी हो गई है, अपने में मस्त, सच्चे प्यार की पहचान ना के बराबर ... social networking site पर virtually greetings भेज कर या e_mail से सन्देश भेज कर हर कोई बस एक फोर्मालिटी पूरी करता है ऐसा लगता है ... ILu..!
Zindagi mein log aate hain
जवाब देंहटाएंHaath milate hain
gale milte hain
Do kadam saath bhi chalte hain
Aur
phir chale jaate hain
Chor jaate hain tanhai
aur
akelapan
Dil ke kono mein ek ajeeb sa khalipan
Yahi to hain
Kuch beete lamho
aur
kuch yaadon ki dastan...
..................by tusharrastogi
खत और डाकिया तो संग्रहालय की चीज हो गये
जवाब देंहटाएंrashmi ji,
जवाब देंहटाएंsach puchhiye to ab daakiye ka intzar kisi ko nahi rahta, lekin agar kisi nimantran-patra ke alaawa koi patra aa jaye to lagta ki wo kitna apna hai jisne aaj ke jaise samay mein jab phone se haalchaal ki aupchaarikta log nibhate kisi ne itne man se apne haath se patra likha hai. lekin patra aate hin nahin ab. ye akelapan hum sabki baat hai.
bahut badhai.
at uttam...
जवाब देंहटाएंवाह..शानदार मौके पर जान्दार कविता..और इसलिये बोल रहा हू क्यूकि अभी ही सेम सबजेक्ट पर लिखा मैने भी :)
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनाये..
भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहम सच जानते हुए भी
अपने को
एकाकी महसूस करते हैं
--वाह!
सब अपने अपने में मस्त हैं...इसीलिए तो अकेलापन है!
जवाब देंहटाएंare di kahan khat-ki yaad dilati ho...ab vo apna pan raha hi kahan rishton main..abhi to hai ye akelapan ..sab sukh hote hue bhi tanha hai insaan.
जवाब देंहटाएंnav varsh ki asim aur anant shubhkaamnaaye ,is rachna ko padhkar kuchh baate yaad aa gayi jisse man gila ho gaya sundar .
जवाब देंहटाएंइस खुबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ................
सब अपने अपने में मस्त हैं...इसीलिए तो अकेलापन है!
जवाब देंहटाएंSach me,
जवाब देंहटाएंRisste aaj apni ahmiyat khote jaa rahen hain...
aur aapne to di gagar men sagar bhar diya hai...!
चिट्ठियों के बिना अकेलापन तो लाजिमी है. साथ ही जीवन में रंग भी फीका ही दिखता है.
जवाब देंहटाएंएकाकीपन तो सच है. आपने संक्षिप्त पंक्तियों में खूब ब्यान किया है.
वैसे ये चिट्ठिया अनमोल होती है. हाल ही लिखा था जैसा महसूस किया था मैंने.
- सुलभ
रश्मि जी ,सादर नमस्कार. चिठ्ठी-पत्री का दौर अब समाप्ति की ओर है और उसका स्थान दुसरे संचार माध्यमों ने ले लिया है.लेकिन अपना अतीत याद आता ही है. अतीत से बिछुड़ने का दर्द ही कविता के रूप में मरहम का काम करता है. परम्परा में बदलाव को स्वीकार कर पाना इतना आसान नहीं होता लेकिन समय के साथ यह बदलाव भी हमें प्यारा लगने लगता है.दिल को छु कर निकलती रचना के लिए धन्यवाद् .
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
BHEED BADHTI JA RAHI HAI PAR VYAKTI AATMKENDRIT HOTA JAA RAHA HAI...ISLIYE TO BHEED ME BHI DOOR TAK SANNATA,AKELAPAN PASRA RAHTA HAI....
जवाब देंहटाएंMAN KO CHHOOTI ATI PRABHAVI RACHNA....
NAV VARSH KI ANANT SHUBHKAMNAYEN....
डुजिटिलाइज दुनिया की एक और हद-बंदी..ये खतों का न आना। अपना फौजी भी नहीं लिखता क्या? खबर लेनी पड़ेगी उसकी.. :-)
जवाब देंहटाएंस्वतः पैदा की हुई मन की स्थिती होती है ये अकेलापन
जवाब देंहटाएंचारों और से तथाकथित अपनो से घिरा होलर भी आप इसे अनुभव कर सकते है |
इ मेल के समय मे मेल की आशा ? ?
:)
बहुत सच्ची बात. चिट्ठी का मुकाबला आज का संचार-तंत्र कभी नही कर सकता...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ढंग से लिखी गई ख़ूबसूरत रचना ...आभार
जवाब देंहटाएंनव वर्ष मंगलमय हो और ऐंसें ही आपकी सुंदर रचनाएँ पढ़ते रहें ।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले आपको नव वर्ष की शुभकामनाएँ ........ ६-७ दिनों से बाहर था, नेट तक पहुँच नही थी ........
जवाब देंहटाएंहाथों से लिखी पाती अब जैसे गुज़रे ज़माने की बात हो गयी है ....... वैसे भी सब इतना मसरूफ़ हैं वक़्त की आँधी दौड़ में किसी को कोई फ़ुर्सत नही .......... बहुत ही कमाल का लिखा है हमेशा की तहर ........
जी हाँ सभी अपने दायरे में है और शायद सम्बन्धो के दायरे और संकुचित हो गये हैं.
जवाब देंहटाएंवैसे अब पत्रों के माध्यम भी तो बदल गये हैं.
ये टिप्पणियाँ भी तो पत्र ही हैं और शायद सम्बन्धो के नये आयाम भी हैं.
खूबसूरत रचना
प्रिय मित्रो
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन को हम सभी महसूस करते है देखिये ना आज मुझे यह वाल पेपर दिखा और फिर आभास हुआ की सच में समय बदल गया है ... एक पुरानी तलवार अब चूहा हो चुकी है.... एक ऐसा चूहा जिसने पल में पूरी दुनिया को अपना मुशिद बना लिया है....
हम भी उसी की छाव में है ... पर इस परिवर्तन पर दुःख नहीं होता है... आज अगर हम इतने नज़दीक है तो इसका कारण भी यही चूहा है...
२६ जनवरी आने वाला है एक ऐसा दिन जब हम अपने देश के स्वतंत्रता सैनानियों को अपने गणतंत्र को और एक गणतंत्र बनने की गुजरी हुई प्रक्रिया को जरूर याद करते है...
यही वह कलम है जिसे हमारे स्वतंत्रता वीरो ने तलवार की तरह उपयोग किया था ... क्या एक पल को भी हमे इस बात का अहसास होता है की क्या दिन थे वो ... या कभी भी हम उन वीरो को भी याद कर पाते है ... क्या कभी भी हमे इतना समय मिलता है की दो पल उन्हें भी दिए जाए या उनसे भी हमे कुछ सीखना चाहिए ....
यह सब फ़ालतू की बाते है इस पर ध्यान देना ज़रूरी नहीं है ....
इसी लिए हम आज़ाद होकर भी गुलाम है....
और अगर इस परिवर्तन से हम खुश है तो वो दिन भी दूर नहीं होगा जब हम एक आज़ाद देश के गुलाम के रूप में इस दुनिया से अलविदा कहेंगे...
विचार करिए इस परिवर्तन पर ....
तलवार बनकर जीना है की चूहा बनकर मरना है...
शुभ रात्रि....