20 फ़रवरी, 2010

खाकर देखो तो


गोल-गोल रोटियों पर
आज एक नज़्म लिखा है
दाल में ख़्वाबों का तड़का लगा
सब्जी में ख्वाहिशों का नमक मिलाया है
खाकर देखो तो
ज़िन्दगी क्या कहती है

37 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह दीदी , खा कर मजा आ गया ।

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  2. Mujhe to padh ke aur dekh ke bhookh lag aayi.. par yahan kahan rotiyaan milengeen???

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  3. ्कविता तो बाद मै पढुंगा, पहले देखूं तो सही सब्जी किस चीज की बनी है, ओर स्वादिष्ट खाना मेरी कमजोरी रहा है..... बहुत सुंदर खुश्बु आ रही है ,आप की यह नज्म भी बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद

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  4. बहुत बढ़िया!!आप की कविता पढ़ चंद शब्द जन्म गए..
    ऐसे पकवान खा
    जिन्दगी क्या कहेगी..
    फिर से एक नयी कविता
    किश्ती बन सागर मे बहेगी।

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  5. aap to qalam se seedhe fire kar rahi hai....zindgi kaha kya... zindgi to mil rahi hai...baat sirf nazariye ki hai :-)

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  6. Didi ji khawab aur khwayeshen ka sundar mixan kiya hai aapne... Yahi to jindagi hai...
    Bahut badhai

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  7. Khwabo aur khwaisho se saji esi bhojan ki thaali ... waah mann tript ho gaya bas...Ilu....!

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  8. बहुत स्वादिस्ट ....मजा आगया

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  9. पहली बात तो खाना बहुत स्वादिष्ट लगा और जिंदगी कह रही है,

    "तुम भी सीख लो ऐसे प्यार से खाने खिलाये जाते हैं."

    शुक्रिया !

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  10. aap kee kavita dekh kar khane ke ichha karane lagi usapar se tasveer ka tadaka bhoot khoob

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  11. sabhi parose gaye hain na ek hi thaali mein ..
    isliye Swad bharaa lagaa...:)

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  12. रश्मि जी,
    ख्वाब और ख्वाहिशों की नज़म का खाना खाकर मन संतुष्ट हुआ, काश सबको ऐसा भोजन नसीब हो! शुभकामनायें!

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  13. बेहद लाजवाब नज़्म है ... ख्वाहिशों का नमक और ख्वाबो का तड़का .... क्या ग़ज़ब की कल्पना है ....

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  14. ....बहुत सुन्दर, स्वादिष्ट व्यंजन!!!

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  15. जिंदगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है मुझे ...
    ये जमीन चाँद से बेहतर नजर आती है मुझे ....
    बहुत उलझती हैं अपने शब्दों के जाल में ....!!

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  16. वाह वाह वाह...यह हुई न गृहणियों वाली भावोद्गार....
    बहुत बहुत सुन्दर....

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  17. बहुत अच्छा लगा यह देखकर कि आपने रोटी पर नज़्म " लिखी " है ।
    उम्मीद है कविता संग्रह शीघ्र उपलब्ध " होगा " ।

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...