23 फ़रवरी, 2010

.....!


मैं अकेली कहाँ
और कब?
नज्में मेरे पास सांसें लेती हैं

38 टिप्‍पणियां:

  1. दीदी चरण स्पर्श

    बहुत ही उम्दा बात कह दी आपने चन्द शब्दो में , लाजवाब ।

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  2. सच...ईश्वर प्रदत्त जब ये विधा साथ हो...फिर अकेलापन कैसा??

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  3. "शुभकामनाएँ..."
    प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

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  4. छोटी सी प्यारी सी तिन पंक्तियों में आपने सब कुछ कह डाला! बहुत खूब! आपकी लेखनी को सलाम!

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  5. नज्मों की सांसों से
    दिल धड़कता है
    लगता है कि
    अभी हम जिंदा हैं....

    बहुत खूबसूरती से लिखा है इन चंद शब्दों में आपने अपनी पूरी दास्तान ...बहुत खूब

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  6. चन्द शब्दों में ही रचना अपनी सम्पूर्णता व्यक्त करती हुई, भावाभिव्यक्ति की रिश्मप्रभा प्रवाहित कर रही है। लाजवाब रचना। बहुत आभार!!

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  7. अगर "गागर में सागर" शब्द का अर्थ जानना हो तो आपकी रचना को पढना पर्याप्त होगा. अद्भुत...रचना.
    नीरज

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  8. वो जो करवट ले के शायद सोई ,शायद जागी
    बाँहों में भरे नज्मों को पलकें उठती है
    धीमे से मुस्काती है
    बंद होठो से कुछ कहती
    कुछ गुनगुनाती है
    सुनती हूँ उसे ,जानती हूँ
    नज्म है खुद एक वो
    तभी तो अकेली कहाँ होती है
    नज्म बहती है रगों में उसके
    नज्म के साथ जीती है
    नज्म 'उनमे' सांस लेती है
    फिर.............उनके पास ? नही ,उनके भीतर ,बहुत भीतर गहराई में नज्म उनमे,वो नज्म में जीती है
    mere blog pr aayengi aap ?
    moon-uddhv.blogspot.com pr

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  9. बहुत ही दिल को छू लेने वाली बात कही आपने

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  10. वाह ... नज़्म अक्सर दिल के आस पास होती है ... ग़ज़ब का लिखा है .

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  11. वाह ....... खुशनसीब नज़्मे ... Ilu...!

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  12. सच है | कम शब्दों में सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति |

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  13. सही कहा है
    बहुत खूब --- ढेर सारी बाते कर दी आपने तीन लाईनों में

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  14. आज तो दिल ने ही वाह वाह कह दी हम से पुछे वगेर.
    बहुत सुंदर जी

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  15. adar jog rashmi ji, bahootkhoob, aisi hi meri rachana hai jo aap ko nazar karna chahuga..
    '' manav mano ek phoola hua gubaaa'''
    sadar

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  16. aapse do teen kavitae chootee hai jab samay mile dekh leejiyega .

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  17. होली और मिलाद उन नबी की हार्दिक शुभकामनायें !

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  18. भावो की अभिव्यक्ति को आपने बहुत लम्बी उरान दी है ..

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...