मेरा दिल करता है
तुम्हें अमलतास का पेड़ बना लूँ
किसी गांव की अल्हड़ बाला सी
तुमको पकड़कर
घूमती जाऊँ घूमती जाऊँ
जब तक तुम्हारी शाखाएं
मुझे थाम न लें ...
शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है
मैंने महसूस किया है कि तुम देख रहे हो मुझे अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...
Wow.....wat a thought
जवाब देंहटाएंदीदी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंमैं आप को नज़र करता हुआ अपनी एक पंक्ति कहना चाहुगा ''' विलय कोण किस्मे हो ये मैं ना जानू सुनो तुम तिलक मैं ललाट बन जाऊ ''''
सुंदर , मन को स्पर्श करतीहुई कविता.
aabhar
बहुत खूबसूरत दिल की बात....
जवाब देंहटाएंbahoot he adar bhavana hai
जवाब देंहटाएंwhat a thought
जवाब देंहटाएंthe ultimate writeups
wao
man gaye di
"jab tak tumhari shakhayen mujhe tham na le." waah kya bat akhi hai di ! ekdam dil se nikli dil tak pahunchi hai.
जवाब देंहटाएंचित्र और उसके साथ दी गयी रचना...दोनों ही बेमिसाल...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
ये भाव अनमोल है.
जवाब देंहटाएंदिल का हाल - दिल की बात. बहुत सुन्दर
adbhut abhivykti....
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब! अपने दिल की बात को आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है!
जवाब देंहटाएंसुंदर भावो से सजी है आप की यह अर्थ पुर्ण कविता
जवाब देंहटाएंअमलतास का पेड ...
जवाब देंहटाएंफ़ैली बाहें ...
झुला क्यों ना झूले ...!!
बहुत ही उम्दा ,दिल को छू लेने वाली रचना ………………चंद शब्दों में ही सारे जज़्बात समेट दिये।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत...
जवाब देंहटाएंशाखाओं पर जज्बातों का झूला
जवाब देंहटाएंये कौन है जो खुद को भूला
bahut pyara ehsaas aur khwaahish, badhai rashmi ji.
जवाब देंहटाएंलाजबाब भाव!! वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन भाव हैं....एकदम अलमस्त से...सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएं........ गांव की अल्हड़ बाला सी.....तुमको पकड़कर
जवाब देंहटाएंघूमती जाऊँ घूमती जाऊँ
जब तक तुम्हारी शाखाएं......मुझे थाम न लें ...
चंद पंक्तियों में कितना कुछ सम्माहित कर दिया गया....
मुबारबाद
रश्मि जी, मुझे हैरत है, कि अब तक.
आपके इतनी अच्छी रचनाओं से सुसज्जित
ब्लॉग से दूर कैसे रहा हूं.........
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ...लाजवाब
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
बहुत ही सुन्दर सोच, लेकिन अमलतास तो अब गाँव में भी नहीं मिलते जाने कुछ दिनों बाद लोग ये उपमा भी समझेंगे या नहीं.
जवाब देंहटाएंyaad aa gaya mujhe mere gaon ka wo amaltash jiski baahon me hum jhoola karte the... sunder abhivyakti!
जवाब देंहटाएंएक क्षण एक अहसास और कवि की कल्पना...........फिर जन्म लेती है कुछ ऐसी कृति
जवाब देंहटाएंbahut achchha likha hai apne..
जवाब देंहटाएंघूमती जाऊँ घूमती जाऊँ
जवाब देंहटाएंजब तक तुम्हारी शाखाएं......मुझे थाम न लें ...
wah kya abhilasha hai!!!
ati sunder
bahut sudar abhivyakti
जवाब देंहटाएंजहाँ हों
जवाब देंहटाएंकम शब्द
वहीं हम
हो जाते हैं निश्शब्द!
shbdo ke sath khubsurat ahsas.
जवाब देंहटाएंshabdo ke saath...jhula jhul rahi ho di.........:)
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi kaha hai aapane, baat dil ko choo gai.
जवाब देंहटाएंअमलतास का पेड़ और फैली बाहें ....
जवाब देंहटाएंकमाल की कल्पना है ...
जब तक तुम्हारी शाखाएं
जवाब देंहटाएंमुझे थाम न लें ...
बेहद ख़ूबसूरत ख़याल...
mujhe tasvir bhi prabhit ki rachna ke saath .sundar
जवाब देंहटाएंBhavya... gudgudata sa Bhaav... kai geet on lauta laaya...
जवाब देंहटाएंKhush rahiye aur likhti rahiye