20 मार्च, 2010

दिल की बात !


मेरा दिल करता है
तुम्हें अमलतास का पेड़ बना लूँ
किसी गांव की अल्हड़ बाला सी
तुमको पकड़कर
घूमती जाऊँ घूमती जाऊँ
जब तक तुम्हारी शाखाएं
मुझे थाम न लें ...

36 टिप्‍पणियां:

  1. दीदी प्रणाम,
    मैं आप को नज़र करता हुआ अपनी एक पंक्ति कहना चाहुगा ''' विलय कोण किस्मे हो ये मैं ना जानू सुनो तुम तिलक मैं ललाट बन जाऊ ''''
    सुंदर , मन को स्पर्श करतीहुई कविता.
    aabhar

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  2. "jab tak tumhari shakhayen mujhe tham na le." waah kya bat akhi hai di ! ekdam dil se nikli dil tak pahunchi hai.

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  3. चित्र और उसके साथ दी गयी रचना...दोनों ही बेमिसाल...वाह...
    नीरज

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  4. ये भाव अनमोल है.
    दिल का हाल - दिल की बात. बहुत सुन्दर

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  5. वाह! बहुत खूब! अपने दिल की बात को आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है!

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  6. सुंदर भावो से सजी है आप की यह अर्थ पुर्ण कविता

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  7. अमलतास का पेड ...
    फ़ैली बाहें ...
    झुला क्यों ना झूले ...!!

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  8. बहुत ही उम्दा ,दिल को छू लेने वाली रचना ………………चंद शब्दों में ही सारे जज़्बात समेट दिये।

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  9. शाखाओं पर जज्बातों का झूला
    ये कौन है जो खुद को भूला

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  10. बहुत ही बेहतरीन भाव हैं....एकदम अलमस्त से...सुन्दर कविता..

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  11. ........ गांव की अल्हड़ बाला सी.....तुमको पकड़कर
    घूमती जाऊँ घूमती जाऊँ
    जब तक तुम्हारी शाखाएं......मुझे थाम न लें ...

    चंद पंक्तियों में कितना कुछ सम्माहित कर दिया गया....
    मुबारबाद
    रश्मि जी, मुझे हैरत है, कि अब तक.
    आपके इतनी अच्छी रचनाओं से सुसज्जित
    ब्लॉग से दूर कैसे रहा हूं.........

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  12. बहुत ही सुन्दर सोच, लेकिन अमलतास तो अब गाँव में भी नहीं मिलते जाने कुछ दिनों बाद लोग ये उपमा भी समझेंगे या नहीं.

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  13. yaad aa gaya mujhe mere gaon ka wo amaltash jiski baahon me hum jhoola karte the... sunder abhivyakti!

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  14. एक क्षण एक अहसास और कवि की कल्पना...........फिर जन्म लेती है कुछ ऐसी कृति

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  15. घूमती जाऊँ घूमती जाऊँ
    जब तक तुम्हारी शाखाएं......मुझे थाम न लें ...


    wah kya abhilasha hai!!!

    ati sunder

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  16. जहाँ हों
    कम शब्द
    वहीं हम
    हो जाते हैं निश्शब्द!

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  17. अमलतास का पेड़ और फैली बाहें ....
    कमाल की कल्पना है ...

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  18. जब तक तुम्हारी शाखाएं
    मुझे थाम न लें ...

    बेहद ख़ूबसूरत ख़याल...

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  19. Bhavya... gudgudata sa Bhaav... kai geet on lauta laaya...

    Khush rahiye aur likhti rahiye

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