चलते-चलते
सांय-सांय सी ख़ामोशी
और वक़्त के आईने में मैं !
बहुत धुंधला नज़र आता है सबकुछ
डर लगता है !
जीत की ख़ुशी
और अल्पना पर
प्रश्नों के रंग बिखरे होते हैं...
आदत है सहज हो जाने की
वरना..
कुछ भी तो सहज नहीं !
हर कमरे में
डर और शोर का अंदेशा..
स्वाभाविक ज़िन्दगी के साथ
सहज रिश्ता नहीं लगता
खुद पर शक होता है
जी रहे हैं
या भाग रहे हैं !
छलावे -सी ज़िन्दगी के
अलग-अलग सांचों से गुजरना
जीना नहीं कहते
ना ही यह ठहराव है ..
मुझे लगता रहा
मैंने ज़िन्दगी में रंग भर लिए
पर वक़्त कहता है-
मैं कुछ नहीं
सारे अल्फाज़ झूठे हैं मेरे !
वक़्त के इस बयान पर
सांय-सांय सी एक ख़ामोशी
मुझे घेर लेती है
और मैं -
दूर-दूर तक
नज़र नहीं आती !
विषय को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है एक बहुत अच्छी प्रस्तुति। रामनवमी की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंक्या बात है माँ जी ? अत्यंत दुखद भाव के दर्शन करा रही हैं ! आप अकेली नहीं हो आपका यह बेटा अब हमेशा आपके साथ और आपके पास है !
जवाब देंहटाएंअत्यंत कुंठित रचना !
आभार चरण स्पर्श समेत !
विचलित से मन की स्थिति को शब्दों में बहुत खूबसूरती से बाँधा है...कहीं मन को उद्वेलित सी कर गयी आपकी ये रचना...
जवाब देंहटाएंहम भागते ही तो है हर पल जिंदगी में कभी हरने के दर से कभी जीतने के लिए...बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंएक अदभुत रचना, गहरे भाव लिये.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
hriday ko chhu gayi yah kavita
जवाब देंहटाएंkitni tadaf hain shbdo me
oh ........
very very nice
main kuchh nahin
जवाब देंहटाएंsare alfaaj jhuthe hain mere
main kya bolu
main chup hun
sundar abhiykti
रश्मि दी ! अंतर्मन में चल रहे झंझावत को बेहतरीन शब्द दिए हैं आपने
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
जवाब देंहटाएंआशा - निराशा, हर्ष - विषाद के भंवर से तो कोई विरला ही खुद को निकाल पाता है | एक पल तो सब कुछ अपना लगता है और अगले ही पल सब कुछ सपना लगता है | ये जीवन है और यही रंग-रूप है इसका | मनःस्थिति का सुन्दर चित्रण |
जवाब देंहटाएंमैं खुद से अक्सर ये सवाल करता हूँ कि मैं कौन हूँ
जवाब देंहटाएंपरन्तु हर बार यही ज़वाब मिलता है कि मैं कुछ भी नहीं,
रश्मि जी हमारा इस ज़हां में कोई वजूद ही नहीं है,
सिर्फ सांय सांय सी एक ख़ामोशी! वाह क्या बात है! अदभुत भाव!
आपने कमाल का रचना लिखा है! आपकी तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पर गए!
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी रचना! बधाई!
जवाब देंहटाएंjeena nahi kahte
जवाब देंहटाएंnaa hi yah thaharav hai...
main kuch nahi,
saare alfaaz jhuthe hain mere..
wow... ati sundar..
waqt ke is bayan par
जवाब देंहटाएंsaany-saany si khamoshi
mujhe gher leti hai
aur main
door-door tak
nazar nahin aati!
ab kya kahen is kavita ke baare me bas kho gaya main to is chitra aur kavita ke sangam me kaheen.
बहुत सुन्दर रचना ......मन के भावों को प्रकट करते हुई प्रत्येक पंक्तियाँ .
जवाब देंहटाएंउफ़ ...ये सांय सांय सी ख़ामोशी ...और उसमे गुम होते हम ....
जवाब देंहटाएंझटक दीजिये ना ...
सच ....इतना आसान तो नहीं मगर जब दूसरों की तन्हाई का खयाल आता है तो खुद का एहसास कहाँ होता है ...
औरों का ग़म देखा तो अपना भूल गया ...मेरा ग़म कितना कम है ....!!
सुन्दर भावाभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंजीवन पर समय के खामोश बयान का यह संवेदना से भरा हुआ सुन्दर विश्लेषण है ।
जवाब देंहटाएंPradam Di,
जवाब देंहटाएंmafi chahunga bahut dino baad aapke blog par aya hun..exam. ki byastata hai.
Rachna bahut hi wajan liye hai..shabdo ka chayan jo aapne kiya hai wah bahut hi sunder hai.
अनुभव के कई पड़ावों से गुजरने के बाद ही अभिव्यक्ति में ऐसे यथार्थ का पुट आ पाता है. समय के रंगों को अपना समझ कर जी लेना ही समझ दरी है .आपके मन के उहा-पोह को दर्ज करती यह प्रस्तुति हम जैसों के लिए मरहम जैसा है.
जवाब देंहटाएंये मार्मिक अभिव्यक्ति , बहुत गहरे तक उतर जाती है. दिखा जाती है की जीने के मायने क्या है? और क्या समझे जाते हैं. बहुत बहुत हृत्स्पर्शी रचना के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंभावो को व्यक्त करने की कला कोई आपसे सीखे... मन के द्वंद को बहुत सुंदरता से कहा है
जवाब देंहटाएंjab apne man ki isthiti ko ham samajh nahi paate to man ek ajeeb se bechainee liye hota hai jise ham vyakt nahi kar paate. aapane es ahsas ko bahut hi behatar tareeke se abhivykt kiya hau .shubhkamnaao ke saath.----.
जवाब देंहटाएंआदत है सहज हो जाने की
जवाब देंहटाएंवरना
कुछ भी तो सहज नहीं.
मन के उथलपुथल को इतनी खूबी से उकेरा है...बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति
आदत है सहज हो जाने की
जवाब देंहटाएंवरना
कुछ भी तो सहज नहीं.
मन के उथलपुथल को इतनी खूबी से उकेरा है...बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति
अंतर्मन्न की दशा,
जवाब देंहटाएंहर शब्द में एक व्यथा ,
हर मोड़ पर साथ होंगे हम सदा...ILu
वक़्त कहता है सारे अल्फ़ाज़ झूठे हैं ....
जवाब देंहटाएंये सच है की वक़्त के सामने किसी की नही चलती ... जो वक़्त कहता और करता है सब वैसा ही करते हैं ...
बहुत लाजवाब होता है आपका लिखा ... उस दिन आपसे बात कर के बहुत अच्छा लगा ...
gahari abhivyakti......sach....!!
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी जितनी सरल दिखती है उतनी होती नहीं और जितनी कठिन दिखती है उतनी भी कठिन नहीं होती !जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण और चिंतन दौनों ही प्रभावित करते हैं ,पन्त जी ने आपको बहुत सार्थक नाम दिया है ' रश्मिप्रभा 'किरणों की तीक्ष्णता और उजास आपकी रचनाओं में झलकता है !
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,
जवाब देंहटाएंमन को द्रवित कर गई रचना| हम सहज और स्वाभाविक जीने का यत्न करते रहते पर सहज नहीं होती ज़िन्दगी जितनी दिखती है| ख़ामोशी में अपना हीं सब कुछ प्रश्नचिन्ह सा बन जाता, और यथार्थ भी छलावा सा लगता है| बहुत अच्छी रचना, शुभकामनाएं!
प्रश्नों के रंग बिखरे होते हैं !!!
जवाब देंहटाएंप्रश्नों के रंग ही तो बेचैनी पैदा करते है !
और लेखन को निखारते हैं !
बहुत बहुत बधाई !
Bahut gahan bhavnaae liye bahut hi khubsurat abhivyakti...Dhanywad.
जवाब देंहटाएंरश्मि दी
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील रचना, मानव जीवन के
अंतर्मन कि उहो-पोहों को दर्शाती,
बधाई
man kee uthal puthal dhadkan kee tarah hee niranter
जवाब देंहटाएंchaltee rahatee hai...........
bahut sunder rachana hai bahut sunder abhivykti......
वाह... बहुत ही सुन्दर मनमोहक कलात्मक प्रस्तुति......वाह !!!
जवाब देंहटाएंhum sahajata se hi jeena chahte hai magar ye namumkin hai ,bahut sundar shabdo se judi hui...pasand aai tasvir aur rachna .
जवाब देंहटाएंDi!! tumhari iss sayen sayen ki khamoshi hi sab kuch byan kar de rahi hai..........amazing!!
जवाब देंहटाएं...सुन्दर भाव ... बेहतरीन अभिव्यक्ति,बधाई!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव, कम शब्दों में दिल को छू लेने की कला कोई आपसे सीखे बधाई
जवाब देंहटाएंMan ke atardhwand ko bakhubi pratut kya hai aapne..... bahut achha laga man ko...
जवाब देंहटाएंbahut shubhkamnayne...
bahoot hee sundar bhav hai
जवाब देंहटाएंयह " मैं " वाकई में कुछ भी नहीं,
जवाब देंहटाएंयह " कुछ भी नहीं " का एहसास क्या है मगर..!!
ना-कुछ और सब-कुछ के ठीक बीचों-बीच है कुछ........
लगता है ना-कुछ ही सब-कुछ हुआ कुछ हो कर....
ये माना की मैं कुछ भी नहीं....,
पर यह भी तो हो सकता है की मैं ही सब-कुछ बन गया हूँ ना-कुछ बन कर..!!
jeevan ke prati darshan (philosophy) is rachna me bakhubi jhalak raha hai...
जवाब देंहटाएंwakt ka aaina....khud par shak.....dar aur shor ka andesha......saare alfaaz jhute hai mere.........saanye saanye se gherti khamoshi...............mind blowing!!!!!!!
अंतरमन की बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भावों से भरी सुन्दर और सार्थक रचना.
जवाब देंहटाएंधरती
जवाब देंहटाएंकरती है
परिक्रमा
सूरज की
झेलती ताप
ले कर
अपने भीतर
अगणित संताप
न थमती
न छोड़ती
पथ अपना
हो कर विचलित
किसी क्षण
निमिष भर!
करती नहीँ
फिर भी कभी
प्रस्तुत
अपनी
आंतरिक अकुलाहट!
डोलती ही रहती
डगमग डगमग
जगमग जगमग
शून्य मेँ
अनवरत
विचरती
असीम को नापती
बचाते हुए
अस्तित्व अपना!
फिर भी
कम तो
नहीँ होता
उसका अपना
अंतस ताप!
[कागद]
[यह पंक्तियां आपकी कविता के द्वंद्व को समर्पित]
omkagad.blogspot.com
वक्त के इस बयान पर
जवाब देंहटाएंसांय-सांय सी खामोशी
मुझे घेर लेती है
और मैं दूर तक नज़र नहीं आती।
...लाजवाब कविता..बधाई।
वक्त के इस बयान पर
जवाब देंहटाएंसांय-सांय सी खामोशी
मुझे घेर लेती है
और मैं दूर तक नज़र नहीं आती।
...लाजवाब कविता..बधाई।
सच कहा दीदी आपने,
जवाब देंहटाएंपर पता नहीं मैं आपके कहे भावो को ठीक से समझ पाई भी हु या नहीं, पर जितना मैं समझ पाई हु उसमे इस सत्य को ही जाना की ये तो मेरे ही मन के भाव है जैसी की कह रहे हो की देखो जिसे तुम स्वीकार नहीं पा रही थी उसे तो किसी ने पढ़ कर शब्दों में भी ढल दिया और अब तुम खुद ही अपने सच को पढ़ रही हो......
कभी कभी लगता है की बहुत कुछ पा लिया है जीवन में और अगले ही पल लगता है की क्या है मेरा अस्तित्व?
क्या है मेरे होने का सच? बस इसी कशमकश में ज़िन्दगी बीत रही है, अपने ही अस्तित्व के सच से भागते है कभी कभी हम, शायद हम वो होना ही नहीं चाहते जो आज हम है, और जो हम होना चाहते थे वो हम हो ही नहीं पाए....... चंचल मन बस इसी तरह के भावो से घिरा हुआ है........