12 जून, 2010

क्लिक !


बड़े गंदे हो चले थे शब्द
करीने से सजाना मुश्किल हो चला था
बच्चों की तरह धूल में सनकर
शरारत से हँस रहे थे ...
मैंने भी अच्छी माँ की भूमिका निभाई
टब में पानी लिया
शैम्पू डाला
और शब्दों को उड़ेल दिया
ब्रश से रगड़ा
मुलायम तौलिये से सुखाया
पाउडर लगाया
आँखों में काजल
रेशम जैसे बालों की पौनी टेल बनाई
और माथे पर काजल का टीका लगाया
अब मेरे शब्द तैयार हैं
लग रहे हैं न सुन्दर?
अब एक फोटो हो जाये -
क्लिक !

35 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने भी अच्छी माँ की भूमिका निभाई
    टब में पानी लिया
    जॉनसंस शैम्पू डाला
    और शब्दों को उड़ेल दिया
    ब्रश से रगड़ा
    मुलायम तौलिये से सुखाया
    पाउडर लगाया
    आँखों में काजल

    __________________________

    बहुत खूबसूरत रचना है, माँ !

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  2. बहुत सुंदर! रश्मिजी आपकी काविताये बहुत हि सरळ और मन को छु जाणे वाली होती है. मां की एक बच्चे के जीवन में क्या अहमियत होती है आपने सहजता से प्रतिपादित कर दिया.

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  3. बेहद ख़ूबसूरत कविता! आपका हर एक कविता मुझे बेहद पसंद है! लाजवाब प्रस्तुती!

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  4. rashmi ji shabdon ko nehlana taiyar karna.. shabdon ka maa hona.. kitna bhavnatmak hai... vakai jaadu karti hain aap shabdon se

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  5. बस जी क्लिक कर दिया और फोटो खिंच गयी...बहुत खूबसूरत..

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  6. रश्मि जी बहुत सुंदर प्रतीक लिए हैं आपने। पर मुझे लगता है आप एक जगह चूक गईं हैं। आपने शैम्‍पू के साथ एक ब्रांड विशेष का नाम लिया है। मेरे ख्‍याल है कि हमें अपनी रचनाओं में किसी कंपनी या ब्रांड विशेष का नाम लेने से बचना चाहिए। क्‍योंकि यह तो अनजाने ही उस ब्रांड विशेष का विज्ञापन हो रहा है। अगर आपको मेरी बात उचित लगे तो कृपया ब्रांड नाम को कविता में से हटा दें। शुभकामनाएं।

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  7. बहुत सुन्दर ! रश्मिजी आपकी clicking भी अद्भुद है. विचारों से परे शब्दों की जादूगरी कोई आपसे सीखे !मज़ा आ गया !

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  8. बहुत सुन्दर ! रश्मिजी आपकी clicking भी अद्भुद है. विचारों से परे शब्दों की जादूगरी कोई आपसे सीखे !मज़ा आ गया !

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  9. शब्दों की आंखों में काजल

    मानवीकरण और बेहद खूबसूरत बिम्बों की मिसाल है यह रचना.

    शब्द थोड़े चंचल होते हैं बहुत छकाते होंगे इस स्नान से पूर्व और स्नान के बाद शांत हो जाते होंगे.. गलत तो नहीं कह रहा हूँ मैं?

    धुली हुई ... काजल लगायी हुई ... और बेहद खूबसूरत रचना

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  10. एक दिन नहलाकर चैन से मत बैठ जाईएगा...फिर गंदे हो जाएंगे. अब तो आपने इतनी दूर ब्लॉग में धकेल दिया है खेलने के लिए..!
    ...अच्छा प्रयोग . सुंदर कविता. बधाई.

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  11. सचमुच माँ की ही तरह शब्दों को नहलाया , धुलाया आपने ...
    एक प्यार भरी चपत भी तो लगानी थी ...!!

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  12. शब्दों की यह धुली निखरी छवि बहुत सुंदर लगी ।

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  13. आपकी कविता पढ़कर चित्र सामने आ गया ममता भरी आँखों से देखती माँ का ..क्यूट सी रचना

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  14. अब एक फोटो हो जाये -
    क्लिक !

    behad sundar...

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  15. ओ...हो तभी शब्दों से खुसबू आ रही है..और लग भी रहे है ताज़ा से...बहुत अच्छे !!!

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  16. सच में शब्द तो बिखरे हुवे ही होते हैं ... आप जैसा कोई देख रेख करने वाला उनको सज़ा सकता है ... अच्छा लिखा है ...

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  17. आपके शब्द तो............क्या कहें..........शायद धुलाई कि जरुरत ही नहीं थी, आपके शब्द तो हमेश ही ऐसे लगते हैं कि अभी नहा धो कर आ रहे हैं!

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  18. बहुत ख़ूबसूरत लग रहे हैं ये साफ़-सुथरे करीने से तैयार किये शब्द... अच्छा हुआ जो काला टीका लगा दिया... नहीं तो हमारी ही नज़र लग जाती :)
    एक फोटो तो बनता है... क्लिक !!

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  19. Kaafi dino baad kuch different, innovative aur bahut pyaara ......ham to aksharo ki ponytail ke baare mein soch rahe hain....Lajawaab soch :-)

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  20. शब्दों की इतनी बेहतरीन प्रस्तुति----और साथ ही सुन्दर चित्र्। मनोहारी लगी आपकी यह कविता।

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  21. बहुत ही सुंदर एवं सरल रचना ,
    सच्ची ममता की झलक दिखती है I
    ढेरों बधाई

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  22. मैंने भी अच्छी माँ की भूमिका निभाई
    टब में पानी लिया
    शैम्पू डाला
    और शब्दों को उड़ेल दिया
    बहुत खूब!!!!!!!!!!!!!!!!

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  23. आप इतनी मेहनत करती हैं तो शब्दों को तो खूबसूरत होना ही था........
    बहुत खूबसूरत!
    तस्वीर भी अच्छी आई है .

    शुभकामनाये.....

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...