एक माँ
मन्नतों की सीढियां तय करती है
एक माँ
दुआओं के दीप जलाती है
एक माँ
अपनी सांस सांस में
मन्त्रों का जाप करती है
एक माँ
एक एक निवाले में
आशीष भरती है
एक माँ
जितनी कमज़ोर दिखती है
उससे कहीं ज्यादा
शक्ति स्तम्भ बनती है
एक एक हवाओं को उसे पार करना होता है
जब बात उसके जायों की होती है
एक माँ
प्रकृति के कण कण से उभरती है
निर्जीव भी सजीव हो जाये
जब माँ उसे छू जाती है
..............
मैं माँ हूँ
वह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
....
हार भी जीत में बदल जाये
माँ वो स्पर्श होती है
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
डर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
मैं माँ हूँ
जवाब देंहटाएंवह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
....
हार भी जीत में बदल जाये
माँ वो स्पर्श होती है
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
डर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
Waah, bahut hi bhawpurn abhivyaqti, Wakai maa yaisi hi hoti hai.
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द दिल को छू गयी! माँ के बारे में जितना भी कहा जाए कम है!
जवाब देंहटाएंek maa ke liye itni achchhi rachna ek maa hi likh sakti hai.........:)
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता ...निदा फाजली साहब की एक कविता याद आ गयी :
जवाब देंहटाएंबेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ
चिड़ियों के चहकार में गुँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ
बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई
फटे पूराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ
हार भी जीत में बदल जाये
जवाब देंहटाएंमाँ वो स्पर्श होती है
bahut sundar bhav se bhari kavita
aapko rachana ke srijan ke liye badhaaii
kishor
हार भी जीत में बदल जाये
जवाब देंहटाएंमाँ वो स्पर्श होती है
bahut sundar bhav se bhari kavita
aapko rachana ke srijan ke liye badhaaii
kishor
सचमुच।
जवाब देंहटाएंHamesha & Forever,
जवाब देंहटाएंजब तक तारों की रात है, तब तक तेरी ही बात है,
अखियों से कह दूं रोये न वोह, इन् आँखों में बस खुशियाँ ही खिलें...
हम हँसे तोह हँसा हौले से तेरा सारा जहाँ...ILu...!
हार भी जीत में बदल जाये
जवाब देंहटाएंमाँ वो स्पर्श होती है ..
सचमुच दुनिया में मां से बढ़कर कोई नहीं होता है ..रचना पढ़कर आंखे नाम हो गई ... बहुत ही भावपूर्ण रचना बढ़िया शब्दों में पिरोई है ... आभार
ऊँगली पकड़े रहो
जवाब देंहटाएंविपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
maa kaa naam hee har mushkil se ubaarta hai sundar rachna
"Maa" shabd itna vyapak he, vishal he
जवाब देंहटाएंki koi tulna nhi iski,
ek khoosurat kavita
maa ke nam
रश्मि जी,पता नहीं क्यों माँ पर लिखा सब कुछ अमृत-तुल्य कैसे हो जाया करता है....माँ कहते ही भीतर जाने कैसा-सा तो होने लगता है....माँ लिखा हुआ-पढ़ा हुआ-बोला हुआ इक शब्द पल भर में ही किन अपार गहराईयों को अपने आप में समेत लाता है.....और फिर आपने यह जो कविता लिख डाली...तो क्या कहूँ...क्या लिखूं....कुछ किया ही नहीं जा रहा मुझसे....!!!सच....!!!
जवाब देंहटाएंगहरी सोच को प्रस्तुत करता है आपकी कविता………………
जवाब देंहटाएंतो फिर माथे पर बल क्यूँ
जवाब देंहटाएंडर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
सही है ..माँ शब्द में ही वो ताकत है जो सारी विपदाओं को हर लेती है ...सुन्दर अभिव्यक्ति
माँ को नमन…..........
जवाब देंहटाएंमाँ तो बस माँ है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ! माँ की भावनाओं का सुंदर चित्रण !
जवाब देंहटाएंमाँ मेरी अब बूढी हो गयी,
जवाब देंहटाएंपड़ गयी हैं झुरियां चेहरे पर.
लटक गए हैं उन बाँहों से,
चमड़ी के लोथड़े जिन्हें बनाकर
झूला मुझे लिटाया था और
व्योम में भी उछाला था.
कंधे पर बिठा के खपरैल की मुंडेर
के पीछे .इन्हीं हाथों से दिखा - दिखा के
चंदामामा को, गौरैया को, कबूतर को..,
न जाने कितनी बार, दिन में - रात में,
कटोरी और गिलास से दूध पिलाया था.
माँ जिसे दिखता नहीं अब मोटे चश्मे से भी,
हर चीज पहचानती है वह, बस आभास से..,
एहसास से.., उसके होने के विश्वास भर से.
किन्तु, ...माँ को सब...दीखता है.....,
बहुत स्पष्ट दिखता है, सैकड़ो मील दूर से...
सच कहा ……………माँ तो ठंडी छांव सी होती है।
जवाब देंहटाएंमैं माँ हूँ
जवाब देंहटाएंवह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
....
हार भी जीत में बदल जाये
माँ वो स्पर्श होती है
बहुत ही भावमय प्रस्तुति, दिल को छूते शब्द अनुपम, आभार ।
मैं माँ हूँ
जवाब देंहटाएंवह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
...ek sachhai...bahut badhiya.
मैं माँ हूँ
जवाब देंहटाएंवह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
माँ तो ठंडी छांव होती है। माँ के लए जितना कहा जाय या महसूस किया जाय कम ही लगता है भावनाओं को सुन्दर शब्द दिए हैं
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
जवाब देंहटाएंडर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
बहुत सुन्दर और सार्थक सन्देश। बधाई।
उम्दा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंमैं माँ हूँ
जवाब देंहटाएंवह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
....................................
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
डर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी...
वाह रश्मि जी,
भावनाओं को...
शब्दों का रूप देने की...
बेहतरीन कला है आपके पास.
bahut bhaavpurn rachna, bahut badhai rashmi ji.
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंडर क्यूँ
जवाब देंहटाएंआंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी...
bhaavpoorn...umda prastuti..abhaar.
बहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह, बहुत भाव और्ण कविता कही आप ने मां पर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपकड़ ली आपकी अंगुली ...
जवाब देंहटाएंऔर क्या ..!
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माँ कि बातें आँख से लगाईं..कहना हमेशा ही कम होता है.. :)
Rashmi ji! "MAA" ki mahima par ati sundar rachna...
जवाब देंहटाएंतो फिर माथे पर बल क्यूँ
जवाब देंहटाएंडर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
दुनिया के सबसे खुबसूरत अहसास को बखूबी सुन्दर शब्दों में संजोया आपने ...धन्यवाद !
अक्सर रुखी रातों में
हार भी जीत में बदल जाये
जवाब देंहटाएंमाँ वो स्पर्श होती है
लाख टके की बात....बहुत सुन्दर कविता
दीदी प्रणाम !
जवाब देंहटाएंमाँ एक और हो दूसरी और इश्वर भी हो तो माँ का पलड़ा भरी रहता है ''' माँ '' इतना सिर्फ बकाहन करू मैं तुम्हारा की तुम सिर्फ'' माँ '' हो !
नमन !
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
जवाब देंहटाएंडर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
सच कहा है ... माँ की उंगली में अंगद का ज़ोर है ..... हर बाधा पार हो जाती है ...
हार भी जीत में बदल जाये
जवाब देंहटाएंमाँ वो स्पर्श होती है
अद्भुत...अद्वितीय रचना...बधाई...
नीरज
माँ के लिए जितना कुछ आप अपनी बेमिसाल कविता में कह गईं, शायद उसके सम्मान में यह भी कम पड़े..........
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दर और ह्रदयमयी रचना पर मेरा आपको सादर यथोचित अभिवादन.
चन्द्र मोहन गुप्त
मैं माँ हूँ
जवाब देंहटाएंवह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
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हार भी जीत में बदल जाये
माँ वो स्पर्श होती है
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
डर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
Sach mein Maa ka yadi sar par haath hai to badi-badi se badi vipada bhi chhoti ho jaati hai..
...Maa ko samarpit bejod rachna
मैं माँ हूँ
जवाब देंहटाएंवह सुरक्षा कवच
जिसे तुम्हारे शरीर से कोई अलग नहीं कर सकता
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हार भी जीत में बदल जाये
माँ वो स्पर्श होती ------------------------AdarnEeya Rashmi di,
Apne bilkul sach likha hai man--to man hoti hai uskee jagah koi naheen le sakta.Vah apne bachchon ke liye surakshha kavach,shikshak,dost, sabhee kuchh to hai.
Poonam
रश्मि जी, मां के ऊपर मैनें अभी तक जो कवितायें पढ़ी हैं -----यह कविता उन स्बसे अलग हट कर है---एक सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंतो फिर माथे पर बल क्यूँ
जवाब देंहटाएंडर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
माँ... बच्चे के लिये अडिग विश्वास होती है...
याद आती है मा्ं. याद आती है मां
जवाब देंहटाएंकितने मनोहारी और भाव पूर्ण ढंग से बात कही आपने...
जवाब देंहटाएंमाँ जिससे जीवन आरम्भ पाता है और जो कभी आस्तित्व से विलग नहीं होता ....को नमन !!!
हार भी जीत में बदल जाये
जवाब देंहटाएंमाँ वो स्पर्श होती है
मन्त्र वाक्य लिखती हैं आप !!!
आभार
behad sunder.
जवाब देंहटाएंati sunder abhivykti.
जवाब देंहटाएंएक ऐसा विषय जिसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता.अवर्णीय.सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंहर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए
तो फिर माथे पर बल क्यूँ
जवाब देंहटाएंडर क्यूँ
आंसू क्यूँ
ऊँगली पकड़े रहो
विपदाओं की आग ठंडी हो जाएगी
ati sunder abhibyakti
hardik badhai
एक माँ
जवाब देंहटाएंजितनी कमज़ोर दिखती है
उससे कहीं ज्यादा
शक्ति स्तम्भ बनती है ...
यही तो मा कि शक्ति है ...
बहुत सुन्दर ...
"MAA KE SURAKSHA KAVACH" ka ehsaas jab hota hai bacha khud ko hamesha mehfooz samajhta hai...
जवाब देंहटाएंmeri taraf se aap aur har maa ko naman.
'ma' ke naam per kuch bhi likho wah khud khuda ho jata hai..
जवाब देंहटाएंiske agae kya kahun. shabdon ka bhandaar bauna ho jata hai....