17 जून, 2010

मैं हूँ तो


मैं एक संभावना हूँ
मुझसे सुर निकल सकते हैं
मैं आग बन सकती हूँ
मैं शीतल बयार
मैं सुबह की अजान
मैं कुरआन
मैं शंखनाद
मैं उम्मीद की किरण
मैं विश्वास का दीया
मैं उठती लहर
महत्वाकांक्षाओं की उड़ान
मंजिल
आकाश
धरती
वृक्ष
पक्षी
अदृश्य की उज्जवल खोज ....

तुम मुझे कुछ भी बना लो
जीतोगे
क्योंकि मैं संभावना हूँ
एक कल्पना
जिसकी पहुँच हकीकत तक है ..

12 जून, 2010

क्लिक !


बड़े गंदे हो चले थे शब्द
करीने से सजाना मुश्किल हो चला था
बच्चों की तरह धूल में सनकर
शरारत से हँस रहे थे ...
मैंने भी अच्छी माँ की भूमिका निभाई
टब में पानी लिया
शैम्पू डाला
और शब्दों को उड़ेल दिया
ब्रश से रगड़ा
मुलायम तौलिये से सुखाया
पाउडर लगाया
आँखों में काजल
रेशम जैसे बालों की पौनी टेल बनाई
और माथे पर काजल का टीका लगाया
अब मेरे शब्द तैयार हैं
लग रहे हैं न सुन्दर?
अब एक फोटो हो जाये -
क्लिक !

10 जून, 2010

फिर भी...


क्यूँ हो रहा है ऐसा
मेरी मुस्कुराहट
हल्की हो गई है
ख्वाब कुछ संजीदा से हो गए हैं
आँखों में अकेलेपन की नदी बहने लगी है...

यूँ मैंने प्यार की पाल खोल दी है
तूफ़ान का शोर ना हो
व्यवधान न हो !
और तो और
दुआओं का धागा भी अदृश्य को बाँधा है
फिर भी...

फिर भी ख्वाब कुछ संजीदा से हैं
आँखों में अकेलेपन की नदी है
मुस्कान ....

दुआ है दुआओं का असर दिखाई दे
बेचैन मन को किनारा मिल जाये ..





08 जून, 2010

कोयल








सुबह आँख खुलते
सुनती हूँ कोयल की कूक
मुझे कोई अपना याद नहीं आता
मैं तो बस कोयल की मिठास
और उसके बदलते अंदाज में खो जाती हूँ

कोयल गाती है
फिर जोर से बोलती है
मैं उसकी हर अभिव्यक्ति को सुनती हूँ
एक गीत, एक पुकार, एक झल्लाहट ..
क्या नहीं होता उसके तेवर में !

कहती है कोयल-
'मेरी मोहक तान
और याद कोई और !'

मैं हर दिन कहती हूँ-
'कोयल
मैं बस तुम्हें सुन रही हूँ
जब तक तुम गाओगी
मैं सुनती रहूंगी ..'

सुनते ही कोयल की कुहू कुहू
सुकून में बदल जाती है
और वह एक डाली से दूसरी डाली का सफ़र
आह्लादित स्वर में करती है
और मेरा पूरा दिन मीठा हो जाता है !

03 जून, 2010

अगले जनम .....




गरीबी !
नन्हीं-नन्हीं खुशियाँ
नन्हें-नन्हें ख्वाब..
पैसे के लिए
बेटी को बेचना
सपनों को मिट्टी में मिलाना
बड़े ठाकुर की शतरंज का प्यादा बनाना
पूरी सांसें दूसरों की धरोहर ...!
फिर भी कहना
'अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो'-- क्यूँ?

कितने जन्म?
कितने जनम सज़ाएआफ़्ता ज़िन्दगी के लिए ?
बहुत हुआ खेल
अब तो सबको बेटा ही दीजो प्रभु
बेटी का नामोनिशान ही मिटा दीजो प्रभु
सिक्के के दूसरे पहलू का खेल
दिखा दीजो प्रभु ...

अगले जनम ये सबक सीखा ही दीजो
किसी के घर में बेटी ना दीजो

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...